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________________ कच्छ विजय-यह सीता महानदी के उत्तर में नीलवान वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में और माल्यवान् पर्वत के पूर्व में उत्तर-दक्षिण लम्बी और पूर्व-पश्चिम चौड़ी है। यहाँ गंगा और सिंधु नदी के बीच में क्षेम नगरी' राजधानी है। इस विजय की सीमा सीता नदी के पास 500 योजन ऊँचे चार कूट वाले 'चित्रकूट वक्षस्कार' पर्वत के द्वारा निर्धारित की जाती है। इसके चार कूट हैं-(1) सिद्धायतन, (2) चित्रकूट,(3) कच्छकूट,(4) सुकच्छकूट। 2. सुकच्छ विजय-चित्रकूट पर्वत के बाद दूसरी सुकच्छ विजय है। क्षेमपुरा' इसकी राजधानी है, यहाँ ग्राहावती कुण्ड से निकली हुई 'ग्राहावती नदी' है, जो सीता नदी में जाकर मिल गई है। | 3. महाकच्छ विजय-ग्राहावती नदी के पास पूर्व की ओर महाकच्छ विजय है। 'अरिष्टा' राजधानी है। ___ इसके पास 'ब्रह्मकूट वक्षस्कार' पर्वत है। ब्रह्म या पद्मकूट के चार कूट (शिखर) हैं-(1) सिद्धायतन, (2) पद्मकूट, (3) महाकच्छ, (4) कच्छावती। | 4. कच्छावती विजय-यह ब्रह्मकूट (पद्मकूट) वक्षस्कार के पूर्व में हैं। इसकी 'अरिष्टवती' राजधानी है। यहाँ आगे'द्रहवती नदी' है। 15. आवर्त्त विजय-द्रहवती नदी के पूर्व में आवर्त विजय है। इसमें 'पंकावती' राजधानी है। इसके बाद पूर्व में 'नलिन कूट वक्षस्कार' पर्वत है इस पर (1) सिद्धायतन, (2) नलिन, (3) आवर्त और (4) मंगलावर्त-ये चार कूट हैं। 6. मंगलावती विजय-नलिनकूट वक्षस्कार के पूर्व में उक्त विजय और उसकी मंजूषा' राजधानी है। वहाँ नलिन कूट से निकलने वाली 'वेगवती नदी' है जो मंगलावती विजय और आगे पुष्कर विजय को दो भागों में विभक्त करती है। 7. पुष्कर विजय-इसमें ऋषभपुरी राजधानी है और सीमा पर 'एकशैल पर्वत' है। इस पर (1) सिद्धायतन, (2) एक शैल, (3) पुष्कलावर्त और (4) पुष्कलावती-ये चार कूट है। पुष्कलावती विजय-इसकी 'पुण्डरीकिणी' राजधानी है। पुष्कलावती विजय के पूर्व में 'सीतामुखवन' है, वह 16,592 योजन 3 कलां लम्बा और दक्षिण में सीता महानदी के पास 2,922 योजन चौड़ा है। पश्चात् क्रमशः घटता हुआ उत्तर में नीलवान् पर्वत के पास यह केवल 1/19 योजन चौड़ा रह गया है। इसके पास पूर्व में जंबूद्वीप का 'विजय द्वार' है। (2) पूर्व-दक्षिण महाविदेह-इसे 'आग्नेय कोण महाविदेह' भी कह सकते हैं। यहाँ भी पूर्ववत् 8 विजय 4 वक्षस्कार और तीन नदी हैं। जंबूद्वीप के विजय द्वार के अंदर सीता नदी की दक्षिण दिशा में 'वत्स विजय' से पूर्व' दक्षिणी 'सीतामुख वन' है। उत्तर दिशावर्ती सीतामुख वन से इसकी विशेषता यह है कि यह वन निषध पर्वत के पास 1/19 योजन चौड़ा है। 1. वत्स विजय-सीतामुखवन के पश्चिम में सीता नदी के दक्षिण में त्रिकूट वक्षस्कार से पूर्व वत्स नामक' नौवीं विजय है। इसकी ‘सुसीमा' राजधानी है। इसके बाद त्रिकूट वक्षस्कार पर्वत है। 2. सुवत्स सचित्र जैन गणितानुयोग 69
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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