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________________ कड कड ऋषभ कट विजय की चौड़ाई 22128 योजन विजय की लंबाई 165923 योजन 3-खंड 4-खंड 5-खंड वैतादय विजय महानदी सिंधु विजय महानदी गंगा 6-खड 2-खंड 1-खड महाविदेह क्षेत्र की विजय-'वि' अर्थात् विशेष प्रकार से 'जय' यानि जीतते हैं। चक्रवर्ती राजाओं के जीतने योग्य षटखंड पृथ्वी को 'विजय' कहते हैं। भरतक्षेत्र एक विजय है, इसी प्रकार जंबूद्वीप के महाविदेह में ऐसी 32 विजय है। प्रत्येक विजय की लम्बाई 16,592 महाविदेह क्षेत्र की एक विजय योजन 2 कलां अधिक है तथा चौड़ाई 2213 योजन की है। ये सभी विजय उत्तर-दक्षिण में लम्बे और पूर्व पश्चिम में निषध - नीलवंत पर्वत चौड़े हैं, पल्यंक के आकार में अवस्थित हैं। भरतक्षेत्र के समान ही यहाँ भी उतने ही लम्बे-चौड़े वैताढ्य पर्वत हैं। ये पूर्व-पश्चिम लम्बे व उत्तर-दक्षिण में चौड़े है। वहाँ पर विद्याधरों की उत्तर और दक्षिण श्रेणियों में 55-55 हजार नगर हैं। आभियोग्य श्रेणियाँ भी उसी प्रकार हैं। विशेष सीता महानदी के उत्तर में जो श्रेणियाँ है वे ईशानेन्द्र के अधीन हैं, शेष श्रेणियाँ शक्रेन्द्र की है। प्रत्येक विजय अपने-अपने वैताढ्य पर्वत के कारण दक्षिणार्ध और उत्तरार्ध इन दो भागों में विभाजित हो जाता है। प्रत्येक वैताढ्य पर्वत के उत्तर में नीलवंत पर्वत के पास 8 योजन ऊँचे ऋषभकूट पर्वत हैं, इन पर उस-उस विजय के चक्रवर्ती अपना नाम अंकित करते हैं। (चित्र क्रमांक 47) महाविदेह की 1 से 8 विजय और 17 से 24 कुल 16 विजयों में 16 गंगा नदी और 16 सिंधु नदी हैं। इसी प्रकार चित्र क्र.47 9 से 16 और 25 से 32 विजय-इन सोलह क्षेत्रों में रक्ता व रक्तवती नाम से 16-16 नदियाँ हैं। ये नदियाँ निषध या नीलवन्त वर्षधर पर्वत के पास ऋषभकूट के दोनों ओर आये हुए कुण्ड में से निकलती हैं। 32 विजय होने से महाविदेह के 64 कुण्ड हैं। इन्हें प्रपातकुण्ड नहीं कहते, क्योंकि महाविदेह की ये नदियाँ पर्वत के ऊपर से नीचे नहीं गिरती हैं। तथा इन नदियों को महानदियाँ भी नहीं कहते क्योंकि वे सीधी लवण समुद्र में नहीं मिलती। वरन् अपने 14-14 हजार नदियों के परिवार के साथ महाविदेह क्षेत्र की सीता-सीतोदा महानदी में मिलकर उसके परिवार रूप बनकर उसके साथ लवण समुद्र में मिलती है। ऋषभकूट से पूर्व में गंगा या रक्ता कुण्ड है और पश्चिम में सिन्धु या रक्तवती कुंड है। ये चारों कुण्ड 60 योजन लम्बे-चौड़े गोलाकार हैं। इन कुण्डों से गंगा-सिन्धु आदि नदियाँ निकलकर, वैताढ्य पर्वत की दोनों गुफाओं के नीचे होकर 14-14 हजार नदियों के परिवार से सीता या सीतोदा महानदी में जाकर मिल जाती है। इससे प्रत्येक विजय छह खण्डों में विभाजित हो जाता है। महाविदेह की एक विजय क्षेत्र की दृष्टि से भरतक्षेत्र से कई गुना अधिक है। इन सभी विजयों में मनुष्यों का निवास है। महाविदेह की गंगा-सिंधु, रक्ता और रक्तवती नाम की 64 ही नदियों का विस्तार, गहराई / आदि पूर्वोक्त भरत क्षेत्र की गंगा-सिंधु नदी के समान है। (1) पूर्व-उत्तर महाविदेह-इसे हम 'ईशान महाविदेह' भी कह सकते हैं। ईशान महाविदेह में 8 विजय 4वक्षस्कार पर्वत एवं 3 अंतरनदी है। उनका क्रम इस प्रकार है महानदी प्रभास वरदाम मागध 68 सचित्र जैन गणितानुयोग
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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