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________________ स्थिति मनुष्यों की आयु शरीर की ऊँचाई वर्ण उत्सर्पिणीकाल के छह आरे आहार का अन्तर | दुषम-दुषमा 21000 वर्ष 16 वर्ष से 20 वर्ष तक |1 हाथ से 2 हाथ श्याम बार-बार दुषमा 21000 वर्ष दुषमा- सुषमा 42000 वर्ष कम 1कोड़ाकोड़ी सागरोपम 20 से 100 वर्ष झाझेरा | 2 हाथ से 7 हाथ रूक्ष अनेक बार 100 वर्ष झाझेरा से 7 हाथ से 500 धनुष पाँचों वर्ण प्रतिदिन पूर्व कोटी वर्ष एक बार 4. सुषमा-दुःषम 2 कोड़ाकोड़ी सागरोपम | पूर्व कोटी से 1 पल्योपम | 500 धनुष से 1 कोस प्रियंगु के| एक दिन समान 5. सुषमा 3 कोड़ाकोड़ी सागरोपम | 1 पल्योपम से 2 पल्योपम| 1 कोस से 2 कोस चन्द्रमा के दो दिन समान 4 कोड़ाकोड़ी सागरोपम | 2 पल्योपम से 3 पल्योपम 2 कोस से 3 कोस | सूर्य के तीन दिन समान 6. सुषमा-सुषमा - जंबूढीप का हैमवत क्षेत्र | भरतक्षेत्र से उत्तर की ओर पूर्व से पश्चिम लवण समुद्र तक लम्बा, पलंग के आकार का हैमवतक्षेत्र है। जो पूर्व-पश्चिम में 6755 योजन 4कलां लम्बा और उत्तर-दक्षिण में 2105 योजन 5 कलांचौड़ा है। उत्तर दिशा में इसकी जीवा-पूर्व-पश्चिम तक कुछ कम 37,674 योजन 16 कलां की और दक्षिण में उसके धनुपृष्ठ की परिधि 38740 योजन 10 कलां की है। इसमें रहने वाले यौगलिक होते हैं। यहाँ सर्वदा सुषम-दुषम आरे के प्रथम भाग जैसी स्थिति रहती है। यह अकर्मभूमि क्षेत्र है, यहाँ के मनुष्यों की सब इच्छाएँ कल्पवृक्ष ही पूर्ण कर देते हैं। यहाँ के मनुष्यों का देहमान एक कोस एवं आयुष्य एक पल्योपम है। इनका देह स्वर्ण के समान पीला दमकता है। शब्दापाती वृत्तवैताढ्य-हैमवत क्षेत्र के ठीक मध्यभाग में यह गोल आकार का वैताढ्य पर्वत है। जो एक हजार योजन ऊँचा और ढाई सौ योजन भूमि में है। इसकी लम्बाई-चौड़ाई एक हजार योजन की एवं परिधि कुछ अधिक 3162 योजन की है। प्याले के समान गोल आकृति वाला यह पर्वत सर्वत्र समतल, सर्वरत्नमय है। एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से चारों ओर घिरा हुआ है। एक पल्योपम की स्थिति वाला परम ऋद्धिशाली, प्रभावशाली 'शब्दापाती' नाम का देव वहाँ निवास करता है। इसकी राजधानी मेरूपर्वत के दक्षिण में अन्य जम्बूद्वीप में है। (चित्र क्रमांक 43) ___ महाहिमवान् वर्षधर पर्वत-यह पर्वत हैमवतक्षेत्र के उत्तर में और हरिवर्षक्षेत्र से दक्षिण में दोनो क्षेत्रों की मर्यादा बाँधने वाला है। चुल्लहिमवान् की अपेक्षा लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई, गहराई एवं परिधि में बड़ा होने के कारण इसे 'महाहिमवान्' कहा जाता है। पलंग की आकृति वाला यह पर्वत अपने पूर्वी किनारे से पूर्वी लवणसमुद्र और पश्चिमी किनारे से पश्चिमी लवणसमुद्र का स्पर्श करता है। वह दो सौ योजन ऊँचा है, 50 योजन भूमिगत है, 42100/1" योजन चौड़ा है। उसकी जीवा पूर्व-पश्चिम 927611deg योजन लम्बी है। 60 सचित्र जैन गणितानुयोग 6. 60
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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