SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आरे के विनाश पाते मनुष्यों एवं पशुओं में से बीज रूप कुछ मनुष्य व पशुओं को उठाकर वैताढ्य पर्वत के दक्षिण-उत्तर भाग में जो गंगा-सिंधु नदी है उनके आठों किनारों (तटों) में से एक-एक किनारे पर गुफा जैसे नौ-नौ बिल हैं। कुल मिलाकर ये 72 बिल होंगे। एक-एक बिल में तीन-तीन मंजिल है, उनमें से 63 बिलों में मनुष्य, 6 बिलों में स्थलचर पशु एवं 3 बिलों में खेचर पक्षी रख देते हैं। उनसे ही मनुष्य व पशुओं का फिर विस्तार होगा। निगोद के अनंतजीव जैसे एक शरीर में रहते हैं उसी प्रकार ये मनुष्य व पशु बिल रूप आवासों में एक साथ रहेंगे। काल के अत्यंत रूक्ष होने से सूर्य आग की तरह तपेगा, चन्द्रमा रात्रि को अत्यंत शीत अवसर्पिणी काल : दुःषम-दुषमा नामक छठवें आरे का दृश्य होगा। भरतक्षेत्र की भूमि तपे हुए तवे के समान अत्युष्ण बन जाएगी। संपूर्ण मानव जीवन तीव्र सूर्य का प्रकाश अस्त-व्यस्त रहेगा। (चित्र क्रमांक 41-42) - मनुष्यों का देहमान उत्कृष्ट एक हाथ का, आयु 20 वर्ष की रह जाती है। शरीर में मात्र 8 पसलियाँ होती है। खाने की अपरिमित इच्छा होती है। कितना भी खा लेने पर भी तृप्ति नहीं होती। रात्रि में अति शीत और दिन में अति ताप के कारण मनुष्य बिलों से बाहर गर्म बाल में मछलियाँ नहीं निकल सकेंगे। सिर्फ सूर्योदय और सूर्यास्त के दबाते हुये। समय एक मुहूर्त-48 मिनट के लिये बाहर निकलते हैं। गंगा-सिंधु नदी का पानी जो सर्प की तरह वक्रगति से बहने वाला तथा गाड़ी के पहिए के मध्यभाग जितना चौड़ा और आधा पहिया डूबे, पतली सकरी गंगा नदी मछलियां पकड़ते जितना गहरा होता है। उसमें रहे मच्छ-कच्छ को बान बडोल मनुष्य। पकड़-पकड़ कर किनारे पर लाएँगे। उन्हें नदी की वैताढ्य पर्वत के बिलों में वास / चित्र क्र.41 पद्म द्रह छठे आरे के मनुष्य, पशु व पक्षियों के आठ किनारों पर आवास स्थान (बिलो. उत्तरार्ध भरत सिंधु नदी के 4किनारों पर बिल गंगा नदी के 4 किनारों पर बिल दक्षिणार्ध भरत चित्र क्र.42 56 सचित्र जैन गणितानुयोग
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy