________________ मनुष्यों का देहमान तीन कोस का तथा आयुष्य तीन पल्योपम की होती है, शरीर में 256 पसलियाँ होती हैं। वज्रऋषभनाराच संहनन एवं समचौरस संस्थान होता है। आहार की इच्छा तीन-तीन दिन के अन्तर से होती है, तब अपने शरीर परिमाण (तुअर के बराबर) कल्पवृक्षों के फल-फूलों का आहार करते हैं। मिट्टी भी मिश्री के समान मीठी, चक्रवर्ती के भोजन से भी अधिक स्वादयुक्त होती है। स्वामी सेवक व्यवहार नहीं होता। प्रत्येक मनुष्य का बल नौ हजार हाथियों सदृश होता है। नर-नारी के अतिरिक्त अन्य परिवार नहीं होता। जब युगल की आयु पन्द्रह महीना शेष रहती है, तब युगलिनी ऋतु को प्राप्त होती है, उस समय वेदमोहनीय कर्म के उदय से उनका सबंध होता है और नारी गर्भ धारण करती है और आयु के छह महीने पूर्व युगलिनी पुत्र-पुत्री का कालचक्र पहला 4कोडा Aकोड़ा कोड़ी सागरोपम सुषम-सुषम आरा रोपम का 4 कोड़ा काड़ी सागरोपण सुषम-सुषम -कोड़ी सागरोपम आरा संतति पालन दूसरा आरा. लदस कोड़ा-कोडी सुषम कोड़ा काड़ा सागरोप पसलिया पसलियाँ 256256 KUS SAMAP सुषम car कोड़ा काड़ा सागरोपम/ वक्ष आरा वक्ष युगलिक GAAAVAIYAL यगलिक CA शरीर 3 कोस आयुष्य 3 पल्योपम आहर 3 दिन से तवर प्रमाण 68 दिन शरीर 3 कोस आयुष्य उपल्योपम आहर 3 दिन से/ तूवर प्रमाण / ਰੀਬ आरा 04दब 2 कोड़ा कोड़ी सागरोयम सुषम-दुःषम ACCCCCCCCOOK वयानका बमाल शरीर 2 कोस अग्नि MEक स्थापनाजायरी आहर दिन पीपल्यो शरीर2 कोस 0 उत्सपिणी काल दस शरीर 1 कोस आयु 1 पल्यापम/आर नबर प्रमाण आहर 2 दिन आयु,2 पल्यो. बर प्रमाण तोटा-काल आंवला प्रमाण के SndEEG सागरापन (63GNSP असंख्य बालों में भरा कुंआ प्रति मावावर एक M बाल निकालत निकलते कुआ सम्मावाला हो जाय - असंख्य वर्ग = एक पल्योपम 10 को सुषम-दुःषम कोड़ा कोड़ी सागरोपम यो.आयु. पिल्योपम शार 1 कोस म.पा. 5 दिन आंवला प्रमाण सपा 9 दिन SEARS चज श.500 धनुष आयु, पूर्व क्रोड आहर अनियमित 13000 वर्ष न्यून1 को,को, सागर दुःषम-सुषम श.7 हाथAR आ.100 वर्षOA अन्त में सर्वप्रलय शाहाथ 5542000 आ, 100 वर्ष अन्त में 28 ॐ तीर्थकर वर्ष आय.204 का-कोड़ी सागरोपम 41हाथ श.1 हाथ .18 कार दुःषम-सुषम 42000 वषन्यूनीका.का.सागर सर्वप्रलय काय.203 तीसरा आरा बिलवासी नरकगामी आग्न बिलवासी मत्स भोजन पलिया एलिया मसि पाँचवा आरा दुःषम 21000 वर्ष th:2 21000 वर्ष दूसरा आरा एठवा आय 21000 वर्ष दुःषम-दुःषमा पहला आरा 21000 वर्ष दुःषम-दु:षमा अवसर्पिणी काल दस चित्र क्र.40 50 सचित्र जैन गणितानुयोग