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________________ सिंधुप्रपात कंड उत्तरार्द्ध भरत / पद्म द्रह A1 खंड 3 खंड 4 ऋषभकूट खंडप्रपात तमिस्त्रगुफा वैताका पर्वत वनिता नगरी खंड 1 वर्तमान विश्व भरत गुफा वैताढ्य पर्वत-पूर्व से गंगाप्रपात कुंड पश्चिम तक लम्बा होने से इसे 'दीर्घ गंगावत कूट चुल्लहिमवंत पर्वत वैताढ्य पर्वत' भी कहा जाता है। यह पर्वत भरतक्षेत्र के मध्य पूर्व से पश्चिम तक 10,72012/19 योजन - दक्षिणार्ध लम्बा, उत्तर-दक्षिण में 50 योजन चौड़ा, 25 योजन ऊँचा और सवा छह लवण समुद्र योजन जमीन में गहरा है। यह रूचक संस्थान युक्त संपूर्ण रजतमय है। वैताढ्य जम्बूद्वीप का दक्षिणार्ध और चित्र क्र.31 उत्तरार्ध भरत क्षेत्र पर्वत के नौ कूट (शिखर) है-(1) सिद्धायतन | कूट, (2) दक्षिणार्ध भरतकूट, (3) खण्ड प्रपातगुहा कूट, (4) मणिभद्रकूट, (5) वैताढ्यकूट, (6) पूर्णभद्रकूट, (7) तमिस्रगुहाकूट, (8) उत्तरार्ध भरत कूट, (9) वैश्रमण कूट। | ये सभी कूट पूर्व लवणं समुद्र के पश्चिम में एवं क्रमशः पूर्व से पश्चिम की ओर स्थित है। सभी कूट छह योजन एक कोस ऊँचे, मूल में छह योजन एक कोस चौड़े, ऊपर कुछ अधिक तीन योजन चौड़े हैं। मूल में / इनकी परिधि कुछ कम 22 योजन की, मध्य में कुछ कम 15 योजन की तथा ऊपर कुछ अधिक 9 योजन की है। | इस प्रकार ये सभी कूट मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संकुचित तथा ऊपर पतले है। गाय के ऊर्ध्वमुखी पूँछ के | आकार जैसे हैं। सभी कूट की तीनों दिशाओं में 500 धनुष ऊँचे और 250 धनुष चौड़े और उतने ही प्रवेश परिमाण तीन द्वार है। इनके सम भूमिभाग पर 500 धनुष लम्बे-चौड़े और ऊँचे देवासन है। वहाँ तीर्थंकरों की दैहिक ऊँचाई जितनी ऊँची 108 जिन-प्रतिमाएँ हैं। 3 मेखला ४१०(चित्र क्रमांक 32) वैताढ्य पर्वत के मध्य में मणिभद्रकूट, वैताढ्यकूट एवं पूर्णभद्रकूट-ये तीन कूट स्वर्णमय हैं शेष छह कूट रत्नमय हैं। वैताढ्य कूट पर वैताढ्य देव का आवास हैं। तमिस्त्रगुहा कूट और खण्डप्रपात गुहा कूट पर कृत्यमालक तथा दक्षिण वैताढ्य पर्वत का परिमाण नृत्यमालक दो विसदृश नामों वाले देव रहते हैं। चित्र क्र. 32 बाकी के छह कूटों पर कूट सदृश नाम के अधिष्ठायक देव रहते हैं। उनमें से प्रत्येक की एक पल्योपम स्थिति है। मेरू पर्वत के दक्षिण में तिरछे असंख्यात द्वीप समुद्रों को पार करने के बाद जंबूद्वीप नाम के अन्य द्वीप में बारह योजन नीचे जाने पर इनकी राजधानियाँ हैं। तमिस्रा गुफा और खण्डप्रपात गुफा-वैताढ्य पर्वत के मूल भाग में सिंधु और गंगा नदी के निकट दो विशाल गुफाएँ हैं। उसमें पहली तमिस्रागुफा है और दूसरी खण्डप्रपात गुफा है। ये दोनों गुफाएँ उत्तर -दक्षिण में 50 योजन लम्बी व पूर्व-पश्चिम में 12 योजन चौड़ी है। इनकी ऊँचाई 8 योजन है। इन दोनों गुफाओं में सूर्य, चन्द्र तो क्या तारा जितना भी प्रकाश नहीं है, वे इतनी सघन व निबिड़ है कि गुफा में प्रवेश करना ही दुःशक्य है, 2 मेखला अ.दे.श्रेणी -10- आ. देव श्रेणी 1 मेखला -10 विद्याधर श्रेणी Slage 50 योजन उत्तर O सचित्र जैन गणितानुयोग 37
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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