________________ - अभिषेक शिलाएँ—ये अभिषेक शिलाएँ चारों दिशाओं में चार हैं। चारों शिलाएँ 500 योजन लम्बी, 250 योजन मध्य में चौड़ी एवं 9 योजन मोटी है। सभी शिलाएँ अर्धचन्द्राकार है। इनमें दो श्वेतस्वर्णमयी और दो रक्तस्वर्णमयी है। पूर्व में पांडुकशिला' है, यहाँ दो सिंहासन हैं। उन पर जंबूद्वीप के पूर्व महाविदेह में जन्में दो तीर्थकरों का जन्मोत्सव मनाया जाता है। दक्षिण में पाण्डुकम्बल शिला पर एक सिंहासन हैं। वहाँ भरत क्षेत्र में उत्पन्न तीर्थंकर का जन्मोत्सव होता है। पश्चिम दिशा की 'रक्तशिला' पर दो सिंहासन है। वहाँ पश्चिम महाविदेहोत्पन्न दो तीर्थंकरों का तथा उत्तर दिशा की 'रक्तकम्बलशिला' पर एक सिंहासन है वहाँ ऐरावत क्षेत्र में उत्पन्न एक तीर्थंकर का जन्मोत्सव मनाया जाता है। अतः एक साथ या तो दो या चार सिंहासनों पर जन्मोत्सव होता है। भरत-ऐरावत क्षेत्र में जब तीर्थकर का जन्म होता है तब महाविदेह में नहीं होता, क्योंकि तीर्थंकर सदा मध्यरात्रि में ही जन्म लेते हैं और भरत-ऐरावत क्षेत्र में जब रात्रि होती है, तब महाविदेह क्षेत्र में दिन होता है। यह बात प्रथम खंड में स्थित अयोध्या नगरी की अपेक्षा से कही गई प्रतीत होती है। अतः एक समय में या तो भरत-ऐरावत के दो तीर्थकरों का जन्मोत्सव होता है अथवा महाविदेह के चार भागों में एक-एक तीर्थंकर, ऐसे चार तीर्थंकरों का। (चित्र क्रमांक 25) तीर्थंकर जन्मोत्सव विधि- सर्वप्रथम अधोलोकवासिनी आठ दिशाकुमारियाँ आसन चलायमान होने का संकेत पाकर तीर्थंकर के जन्मनगर में सामानिक देव-देवियों के साथ विमान से आती हैं। देव-देवी जन्म-भवन के पास रुकते हैं। दिशाकुमारियाँ अंदर जाकर तीर्थंकर की माता को प्रणाम कर अपना परिचय देती पंडग वन पर अभिषेक शिलाएँ उत्तर रक्तकंबल शिला hledh ईशानेन्द्र का महल सिद्धायतन रक्तशिला ईशानेन्द्र का महल सिद्धायतन / मेरु पर्वत की चूलिका सिद्धायतन बावडी सिद्धायतन शक्रन्द्र का महल पांडुशिला पांडुकंबल शिला शक्रेन्द्र का महल दक्षिण चित्र क्र.25 30 सचित्र जैन गणितानुयोग