________________ नरक 149 नरकों की तालिका यौगिक | रौढ़िक आंतरा | 84 लाख | पृथ्वी की | नरक की | जन्म का | उत्कृष्ट अवधि उत्कृष्ट नाम नाम प्रतर नरकावास मोटाई / | पृथ्वी अंतर | आयु ज्ञान की अवगाहना (योजन में) सीमा 1 रत्नप्रभा घम्मा | 13 | 12 . 30 लाख | 1लाख रत्न के | 24 मुहूर्त 1 सागर 4कोस |7 धनुष 80 हजार | समान 6अगल 2 शर्कराप्रभा वंशा | 11 | 10 7 दिन | 25 लाख | 1 लाख कंकर के 32 हजार समान 15 लाख | 1लाख | रेत के 28 हजार समान 3 सागर | 37 कोस| 15% धनुष 12 अंगुल |7 सागर | 3 कोस 317 धनुष बालुकाप्रभा शिला | 9 | 8 पंकप्रभा अंजना 7 10 लाख 1लाख | कीचड़ युक्त| 1मास |10 सागर 2/2 कोस| 62/धनुष 20 हजार धूमप्रभा | अरिष्ठा | 5 | 4 3लाख | 1 लाख | धुंए युक्त 18 हजार 2 मास 17 सागर | 2 कोस 125 धनुष 6 तमःप्रभा मघा / 3 5 कम 1 लाख 1लाख | अंधकारपूर्ण| 4 मास 22 सागर 12 कोस | 250 धनुष 16 हजार महातम:प्रभा माघवती 1 पाँच . घना 6 मास 33 सागर 1 कोस | 500 धनुष 1लाख 8 हजार अंधकारपूर्ण विशेष-नरकों में नारकियों के 10 प्राण,6 पर्याप्तियाँ,4 संज्ञा, 3 ज्ञान, 3 अज्ञान, 3 दर्शन, 3 अशुभ लेश्या, भव्यत्व अभव्यत्व, पारिणामिक भाव, आर्त और रौद्र ये 2 ध्यान तथा पहले से चौथा गुणस्थान होता है। नरक में उत्पन्न जीव-नरक में घोर पाप करने वाले मनुष्य व तिर्यंच ही उत्पन्न होते हैं, देव और नारकी नहीं। मनुष्य में भी कर्मभूमि के मनुष्य ही नरक में जा सकते हैं अकर्मभूमि के नहीं। तिर्यंच जीवों में असंज्ञी जीव पहली नरक, सरीसृप, गोधा नकुल आदि जीव दूसरी नरक, पक्षी तीसरी नरक, सिंह चौथी नरक, सर्प पाँचवी नरक, स्त्रियाँ छठी नरक तक उत्पन्न होती हैं, सातवीं नरक में केवल नर मत्स्य व मनुष्य ही उत्पन्न होते हैं अर्थात् प्रथम नरक में पाँचों प्रकार के संज्ञी व असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय, दूसरी नरक में पाँचों प्रकार के संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय, तीसरी नरक में भुजपरिसृप छोड़कर शेष चार चौथी नरक में खेचर भी छोड़कर शेष तीन, पाँचवीं नरक में स्थलचर भी छोड़कर शेष दो, छठी नरक तक एक जलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय और सातवीं नरक में जलचर स्त्री छोड़कर जलचर पुरुष और नपुंसक तिर्यंच पंचेन्द्रिय उत्पन्न हो सकते हैं। गर्भज मनुष्य सात नरक तक उत्पन्न हो सकते हैं। सातवीं नरक में उत्पन्न होने वाले पाँच जीवों के नाम जीवाभिगमसूत्र में आते हैं-1. जमदग्निपुत्र परशुराम (21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करने वाला), 2. लच्छविपुत्र दृढायु, 3. उपरीचर वसुराजा (पर्वत और नारद के मध्य 'अज' शब्द के अर्थ को लेकर होने वाले विवाद में अज का अर्थ 'बकरा' कर हिंसामय यज्ञ को प्रोत्साहन देने वाला), 4. कौरव्य गोत्रीय अष्टम चक्रवर्ती सुभूम (पृथ्वी को सात बार ब्राह्मणों से रहित करने वाला), 5. चुलनीसुत ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती (अत्यंत भोगासक्त तथा क्रूर अध्यवसायी)। 18 सचित्र जैन गणितानुयोग