________________ (2) प्रकीर्णक नरकावास पंक्तिबद्ध विमानों के बीच-बीच में पुष्पावकीर्ण (विविध आकृति वाले) होते हैं। ये सब अंदर से गोल बाहर से त्रिकोण, चतुष्कोण और नीचे नोंकदार शस्त्र जैसे हैं। प्रथम नरक की एक प्रस्तर का उदाहरण-जैसे प्रथम नरक का मध्य प्रथम प्रस्तर 'सीमंतक' नाम का है, उसकी चारों दिशा में 49-49 और विदिशा में 48-48 पंक्तिबद्ध नरकावास है। इस प्रकार एक सीमंतक (इन्द्रक) + 49 x 4 = 196 दिशागत और + 48 x 4 = 192 विदिशागत नरकावास कुल 389 आवलिकाबद्ध नरकावास प्रथम प्रस्तर में है। इसी प्रकार 13 प्रस्तर में 13 इन्द्रक और आठों दिशा की कुल 4433 पंक्तिबद्ध तथा शेष 29,95,563 प्रकीर्णक नरकावास हैं। सब मिलाकर 30 लाख नरकावास प्रथम नरक में हैं। सातों नरकों में प्रत्येक प्रस्तर के मध्य में एक इन्द्रक (मुख्य) नरकावास और उसकी दिशा-विदिशा में एक-एक न्यून नरकावास समझना चाहिये। सातवीं नरक पृथ्वी में एक ही प्रस्तर है। उसके मध्य में अप्रतिष्ठान' नाम का इन्द्रक नरकावास है। उसकी दिशा में चार नरकावास हैं। विदिशा में नरकावास नहीं है तथा इस नरक में प्रकीर्णक नरकावास भी नहीं नरक 707 आवलिकाबद्ध और प्रकीर्णक नरकावास प्रथम | दूसरी | तीसरी | चौथी / पाँचवीं / छठी | सातवीं नरक नरक नरक नरक नरक नरक आवलिका प्रविष्ट4433| ___2695 1 485 265 635 नरकावास प्रकीर्णक | 29,95,567 24,97,305 | 14,98,515| 9,99,2932,99,735 | 99,932 नरकावास कुल नरकवास | 30 लाख 25 लाख 15 लाख 10 लाख 3 लाख 99,9955 नरकावासों की विशालता-सातवीं नरक का अप्रतिष्ठान नरकावास एक लाख योजन का लम्बा-चौड़ा और गोलाकार है। पहली नरक का सीमांतक नरकावास 45 लाख योजन का लम्बा-चौड़ा और गोलाकार है। शेष सभी नरकावास असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं। वे इतने विस्तृत हैं कि तीन चुटकी बजाए, उतने समय में एक लाख योजन विस्तार वाले जम्बूद्वीप के 21 चक्कर लगाकर वापिस आ जावे ऐसी शीघ्रगति वाला देव छह महीने तक निरन्तर चलता रहे, तो भी किसी नरकावास का पार पा सकता है, किसी का नहीं। नरकावासों की भूमि-अतीव अंधकार पूर्ण नरक की भूमि मरे हुए कुत्ते, गधे, सूअर आदि जानवरों के अत्यंत सड़े हुए माँस और विष्ठा आदि से भी अत्यंत दुर्गधमय है। यदि सातवीं नरक की मिट्टी का एक कण भी यहाँ आ जाए तो यहाँ के 25 कोस तक के जीव मर जाए। ऐसी दुर्गंधमय मिट्टी का वे नारकी जीव भक्षण करते नरकावासों की भूमि हमेशा मल-मूत्र, विष्ठा, श्लेष्म, कफ आदि गंदगी से व्याप्त रहती है। माँस, नख, केश, दाँत, चर्म आदि से आच्छादित श्मशान जैसी भूमि होती है। वहाँ की भूमि का स्पर्श इतना तीक्ष्ण और पीडाजनक है, जैसी एक हजार बिच्छुओं के एक साथ काटने से होती है। कहा भी है सचित्र जैन गणितानुयोग 15