SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पहली नरक पृथ्वी के चरमान्त से चारों दिशाओं में सात नरक पृथ्वियों का झालर का आकार अलोक 12 योजन दूर है और सातवीं नरक के पृथ्वीपिण्ड के चरमान्त से 16 योजन दूर है। पृथ्वीपिण्ड और उसके नीचे रहे घनोदधि आदि झालर के आकार हैं और चौतरफ रहे घनोदधि आदि वलयाकार है। चित्र क्र.15 - नरकावासों के आकार व प्रकार सातों नरकों में कुल मिलाकर 49 प्रस्तर, 42 अंतर और 84 लाख नरकावास है। ये सभी प्रस्तर 3000 योजन ऊँचाई वाले हैं। उनमें नीचे और ऊपर के 1000-1000 योजन छोड़कर मध्य के 1000 योजन की पोलार में नारकियों के दो प्रकार के आवास हैं-(1) आवलिका प्रविष्ट और (2) प्रकीर्णक नरकावास। (1) आवलिका प्रविष्ट नरकावास के प्रत्येक प्रस्तर के मध्य में एक मुख्य केन्द्रभूत नरकावास होता है, उसकी चारों दिशाओं और विदिशाओं में पंक्तिबद्ध विमान होते हैं। मध्य का नरकावास गोल और उसकी दिशा-विदिशा की प्रथम पंक्ति के आठ नरकावास त्रिकोण होते हैं। उनके चारों ओर के आठ नरकावास चतुष्कोण तथा उनके चारों ओर आठ नरकावास गोल हैं। उसके बाद अनुक्रम से त्रिकोण, चतुष्कोण और गोल-इस प्रकार आवलिक प्रविष्ट विमान तीन-तीन आकार के हैं। इन सब आवासों के ऊपर चबूतरे (पीठ) का मध्यभाग अंदर से गोल, बाहर से चतुष्कोण और नीचे तीक्ष्ण नोंकदार शस्त्र जैसा है। अवलिका प्रविष्ट नरकावास तीनों ओर से देखने पर आवलिका प्रविष्ट नरकावास 3 पाथडा 1000 यो. 1000 यो.1000 यो. 1000 यो.1000 यो.1000 यो. 1000 यो. 1000 यो.1000 यो. 2 पाथडा शून्य चतुष्कोण नरकावास 1पाथडा गोल त्रिकोण सीमन्तक V नरकेन्द्र चित्र क्र. 16 सचित्र जैन गणितानुयोग 13
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy