SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नारकीय जीव रहते हैं। इन जीवों का देहमान उत्कृष्ट 250 धनुष का तथा आयु जघन्य 17 सागरोपम व उत्कृष्ट 22 सागरोपम की है। ___7. महातमःप्रभा पृथ्वी-घने अंधकार की अधिकता के कारण यह भूमि ‘महातमःप्रभा' पृथ्वी कहलाती है। यह एक राजू ऊँची और 46 राजू घनाकार विस्तार में स्थित है। इसमें एक लाख आठ हजार योजन मोटा पृथ्वी पिण्ड है। उसमें से 527 हजार योजन नीचे और 527 हजार योजन ऊपर छोड़कर बीच में तीन हजार योजन की पोलार है। उसमें एक ही प्रस्तर है, अन्तर नहीं है। प्रस्तर में 'काल', 'महाकाल', 'रौरव' (रूद्र), महारौरव' (महारूद्र) और 'अप्रतिष्ठान' नामक पाँच नरकावास हैं। इन नरकावासों में असंख्यात कुम्भियाँ हैं जिनमें असंख्यात नारकी जीव रहते हैं। इन जीवों का देहमान उत्कृष्ट 500 धनुष का और आयुष्य 22 सागरोपम एवं उत्कृष्ट 33 सागरोपम का है। सातों नरकों में अपने देहमान (अवगाहना) से दुगुनी अवगाहना उत्तर वैक्रिय द्वारा नारकी कर सकते हैं। 10 नरकों में वलय की स्थिति / सातों नरक पृथ्वियाँ घनोदधि, घनवात तथा तनुवात-इन तीन वलयों पर स्थित हैं। नरक पृथ्वियों को चारों ओर (सभी दिशा-विदिशा) से वेष्टित करके रहे हुए होने के कारण इन्हें वलय' कहते हैं। सर्वप्रथम नरक पृथ्वियों के नीचे के किनारों को स्पर्श करके घनोदधि (जमा हुआ पानी) वलय है, इसको वेष्टित करके घनवात (पिण्डिभूत वायु) है। इसको वेष्टित करके तनुवात (पतली/हल्की वायु) है। घनोदधि 20 हजार योजन मोटा है, उसके नीचे घनवात असंख्यात योजन का फिर तनुवात असंख्यात योजन का फिर असंख्यात योजन का आकाश है। सातों नरक पृथ्वियों के नीचे इसी क्रम से घनोदधि आदि विद्यमान है। 0 तीनों वलयों की ऊँचाई नरक पृथ्वीपिण्ड की मोटाई के समान है और चौड़ाई निम्न प्रकार से हैनरक घनोदधि घनवात तनुवात तीनों वलय की चौड़ाई और अलोक से अंतर पृथ्वी 41/2 योजन+ 6 योजन + 6/3 योजन + + = 12 योजन = 122/3 योजन = 131/3 योजन लं 6213 योजन+ 7 योजन + 71/3 योजन + 72/3 योजन+ 8 योजन + = 14 योजन | 1/2 योजन 11/2 + 1/12 योजन 1/2 + 2/12 योजन 13/4 योजन 13/4 + 1/12 योजन 13/4 + 2/12 योजन 2 योजन 43/4 योजन+ 5 योजन 51/4 योजन+ 512 योजन+ 5314 योजन+ 6 योजन+ = 142/3 योजन = 15/5 योजन = 16 योजन 12. सचित्र जैन गणितानुयोग
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy