________________ दक्षिणोत्तर दिशा में होते हैं, तब पंक्तिगत 66 चन्द्र पूर्व-पश्चिम दिशा में होते हैं। सूर्य जब घूमते-घूमते पूर्व-पश्चिम दिशा में आते हैं, तब चन्द्र घूमते-घूमते दक्षिण दिशा में आ जाता है। इस प्रकार 132 चन्द्र और 132 सूर्य रात्रि और दिवस के विभाग पूर्वक मनुष्य क्षेत्र में सतत परिभ्रमण करते रहते हैं। किन्तु स्व-पंक्ति में से कोई भी चन्द्र या सूर्य आगे-पीछे नहीं होता। (चित्र क्रमांक 93) 66-66 सूर्य-चन्द्र की ये दो पंक्तियाँ ही मनुष्य क्षेत्र में मेरू की प्रदक्षिणा करती हों, ऐसी बात नहीं, वरन् एक सूर्य-चन्द्र का पूरा परिवार-28 नक्षत्र, 88 ग्रह,66975 कोटा कोटी (संख्या के आगे 14 बिन्दु) तारा भी अपने-अपने चन्द्र के साथ परिभ्रमण करते हैं। ____ इस प्रकार 132 चन्द्र के 3696 नक्षत्र विमान 11616 ग्रह परिवार और 88,40,700 कोटाकोटी तारा का परिवार मनुष्य क्षेत्र में सदा काल मेरु के चारों ओर परिभ्रमण करता है। इसमें इतना विशेष है, कि चन्द्र-सूर्य और ग्रह पृथक्-पृथक् मण्डल में परिभ्रमण करने वाले होने से अनवस्थित योग में परिभ्रमण करते हैं। जबकि नक्षत्र और तारा अपने-अपने मंडल में ही परिभ्रमण करने वाले होते हैं। ___ साथ ही जंबूद्वीप के चन्द्र के साथ जिस नक्षत्र का योग है, समश्रेणी में रहने वाली सभी चन्द्र पंक्तियों के साथ उसी नक्षत्र का योग होता है। जैसे अभिजित नक्षत्र से प्रारम्भ होने वाली पंक्ति में अढ़ाई द्वीप तक 66 ही नक्षत्र अभिजित वाले होंगे। इसी प्रकार सभी पंक्तियों के विषय में समझ लेना चाहिए। इन चारों विभागों में वर्षादि ऋतुएँ, दक्षिणायन, उत्तरायण दिवस-रात्रियाँ आदि भी समान होती हैं। किन्तु इनका प्रारम्भ दक्षिण-उत्तर विभाग में पूर्व-पश्चिम विभाग की अपेक्षा एक समय पहले होता है। अवसर्पिणीउत्सर्पिणी काल का परिवर्तन तो दक्षिण-उत्तर विभाग में भरत-ऐरावत क्षेत्र में ही होता है, अन्यत्र नहीं। इस प्रकार 66-66 की दो पंक्तियाँ अढ़ाई द्वीप के पूर्वीय, दक्षिणी, पश्चिमी और उत्तरीय सभी विभागों में क्रमशः गतिमान रहती हैं। मनुष्य क्षेत्र के बाहर चन्द्र-सूर्य का अंतर-मनुष्य क्षेत्र के बाहर एक चन्द्र से दूसरे चन्द्र का परस्पर अंतर एक लाख योजन साधिक एक योजन का 48/61 भाग जितना है, क्योंकि वहाँ एक चन्द्र से दूसरे चन्द्र के मध्य सूर्य विमान आता है। सूची श्रेणी द्वारा चन्द्र से सूर्य का विमान 50,000 योजन और उसके 50,000 योजन बाद पुन: चन्द्र का विमान आता है। इसी प्रकार एक सूर्य और दूसरे सूर्य के मध्य चन्द्र का विमान इतनी ही दूरी पर आता है। वहाँ सभी सूर्य और सभी चन्द्रों की आपस की दूरी एक लाख योजन की हो जाती है, उसमें चन्द्र का विस्तार (56/61) और सूर्य का विस्तार (48/61) भी जोड़ लेना चाहिए। किन्तु चन्द्र से सूर्य का और सूर्य से चन्द्र का अंतर सदा 50,000 योजन का ही रहेगा। _ अढ़ाई द्वीप के बाहर चन्द्र-सूर्य दोनों का प्रकाश क्षेत्र पकी हुई ईंट के समान लंबचौरस (आयत) आकार का है। उनके ताप क्षेत्र की लम्बाई अनेक लाख योजन की और चौड़ाई एक लाख योजन है। चन्द्र-सूर्य के मध्य 50 हजार योजन का अंतर होने से चन्द्रप्रभा, सूर्यप्रभा से मिश्रित हैं और सूर्यप्रभा चन्द्रप्रभा से मिश्रित है। अतः मनुष्य लोक की तरह अत्यन्त गरम या अत्यन्त शीतल नहीं, वरन् सुख रूप है। इन ज्योतिष्क विमानों का आकार पकी हुई ईंट के समान लम्ब चौरस होने के कारण इनके प्रकाश क्षेत्र की लम्बाई अनेक लाख योजन की और चौड़ाई एक लाख योजन की है। (चित्र क्रमांक 94) 0 133 सचित्र जैन गणितानुयोग AAAAAAAAD