________________ युगलिक क्षेत्रों में भी चन्द्रादि की गति होने से वहाँ भी ग्रहण तो संभव है, किन्तु उनके महा पुण्य एवं क्षेत्र प्रभाव तथा ज्योतिरांग कल्पवृक्षों के कारण ग्रहण दर्शन के अभाव से उनको कोई उपद्रव नहीं होता। इसकी विशेष जानकारी जीवाभिगम सूत्र से जाननी चाहिए। सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण जानने की सरल रीति-सूर्य के नक्षत्र में ही अमावस होती है और उसी दिन शाम को एकम/प्रतिपदा तिथि आ जाय तो उस दिन अवश्य सूर्य ग्रहण होता है। इसी प्रकार कृष्णपक्ष की तृतीया को जो नक्षत्र होता है, उसी नक्षत्र में पूर्णमासी आ जाय तो चन्द्र ग्रहण अवश्य होता है। दोहे में कहा भी हैजे नक्षत्रे रवि तपे, अमावस्या होय। पड़वा सांझे जो मिले, सूर्यग्रहण तब होय॥1॥ मास कृष्ण की तीज अंधारी, होय ज्योतिषी लेय विचारी। ते नक्षत्रे जे होय पूनम ग्रहण होय न रखीस वहेम // 2 // जैन ज्योतिष में सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण कब-कब होगा, इसे बताने वाले हजारों वर्षों के केलेण्डर तैयार हुए हैं। चन्द्र मण्डल और सूर्य मण्डल में अन्तर (1) चन्द्र के 15 मण्डल हैं। जबकि सूर्य के 184 मण्डल है। (2) चन्द्र के 15 मण्डलों में से 5 मण्डल जम्बूद्वीप में और 10 मण्डल लवण समुद्र में है। जबकि सूर्य __के 184 मण्डलों में से 65 मण्डल जम्बूद्वीप में है और 119 मण्डल लवण समुद्र में पड़ते हैं। (3) चन्द्र विमान की अपेक्षा सूर्य विमान की गति शीघ्र है। इस कारण चन्द्र मण्डल की अपेक्षा सूर्य मण्डल नजदीक-नजदीक हैं। (4) चन्द्र और सूर्य दोनों के मण्डल क्षेत्र (विचरण क्षेत्र) 510 योजन 48/61 भाग प्रमाण हैं। उसमें 180 योजन प्रमाण संचार क्षेत्र जम्बू द्वीप में हैं और 330-48/61 योजन क्षेत्र लवण समुद्र में हैं। (5) सूर्य मण्डलों में दक्षिणायन और उत्तरायण ये दो मुख्य विभाग हैं। चन्द्र मण्डलों में भी ये दो विभाग हैं, किन्तु सूर्य के समान नही, क्योंकि व्यवहार में भी नहीं आते। (6) चन्द्र मण्डल 15 होने से उसके बीच अन्तर 14 होते है और सूर्य-मण्डलों की संख्या 184 होने से उसके अन्तर 183 हैं। (7) चन्द्र मण्डल के एक अन्तर का प्रमाण 35076 योजन है। जबकि सूर्य मण्डल के 1 अन्तर का प्रमाण .. दो योजन है। (8) चन्द्र का मण्डल 56/61 योजन प्रमाण विष्कम्भ वाला है। जबकि सूर्य मण्डल 48/61 योजन प्रमाण है। नक्षत्र ज्योतिष्क व उनके देव चन्द्र विमान से 4 योजन ऊपर नक्षत्रमाला है। जो समभूतला पृथ्वी से 884 योजन (28,28,800 मील) ऊपर है। इनके विमान पाँचों वर्गों के रत्नमय एक-एक कोस के लम्बे-चौड़े और आधे कोस ऊँचे हैं। इनमें रहने वाले देवों की देह सात हाथ की आयु जघन्य पाव पल्योपम उत्कृष्ट आधे पल्योपम है। देवियों की आयु जघन्य पाव पल्योपम की उत्कृष्ट पाव पल्योपम से कुछ अधिक है। नक्षत्र मंडल की नियत व्यवस्था-नक्षत्रों के आठ मंडल हैं। जम्बूद्वीप के 180 योजन क्षेत्र में 2 और लवण समुद्र के 330 योजन क्षेत्र में 6-इस प्रकार कुल नक्षत्र मंडल आठ हैं। इनके मंडल का आकार वर्तुल 'गोल है। ये सभी नक्षत्र अपने-अपने नियत मंडल पर ही परिभ्रमण करते हैं। एक मंडल स्थान छोड़कर अन्य सचित्र जैन गणितानुयोग PAHARASARDARASA- 123