________________ जब चन्द्र सर्वबाह्य मंडल पर परिभ्रमण करता है, तब वह प्रत्येक मुहूर्त में साधिक 5,125 योजन क्षेत्र पार करता है और भरत क्षेत्र के मनुष्यों को 31,831 योजन दूर से दिखता है। चंद्र मंडल की हानि-वृद्धि एवं तिथियों की व्यवस्था-जैसे सम्पूर्ण जम्बूद्वीप में दिन और रात्रि का विभाग करने वाले दो सूर्य हैं, वैसे ही तिथियों की व्यवस्था करने वाले दो चन्द्र है। इनमें सूर्य के बिम्ब की हानि-वृद्धि प्रतिदिन नहीं होती किन्तु चन्द्रबिम्ब की हानि-वृद्धि हर रोज होती है। जैसे कि दूज के दिन चन्द्रमा का बिम्ब केवल धनुष के आकार की एक पतली लकीर जैसा होता है। उसके बाद क्रमशः वृद्धि को प्राप्त होता हुआ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन सम्पूर्ण चन्द्र मंडल दिखाई देता है। यद्यपि मूल स्वरूप में तो चन्द्रमा सदा पूर्ण मंडल का ही होता है। उसमें कोई घट-बढ़ नही होती। किंतु आवरण के कारण वह सदा घटता-बढ़ता दिखाई देता है। (चित्र क्रमांक 88) चन्द्र मंडल की शुक्ल पक्ष में अनुक्रम से वृद्धि होना और कृष्ण पक्ष में हानि होने का कारण 'राहू' के विमान का आवरण और अनावरण मात्र है। राहू दो प्रकार के हैं-(1) नित्य राहू और (2) पर्व राहू। नित्य राहू तिथि, पक्ष, मास आदि का कारण है और पर्व राहू चंद्रग्रहण-सूर्यग्रहण का। (1) नित्य राहू-राहू का विमान कृष्णवर्ण का है। यह विमान स्वाभाविक रूप से ही चन्द्रमा के साथ निरंतर होता है। चन्द्र के विमान के नीचे चार अंगुल दूर चलता हुआ चन्द्रमा की एक-एक कला को ढंकता जाता है। अंतिम दिन की 16 कला में जो एक कला शेष रह जाती है उसी का नाम अमावस्या' है। यही कृष्ण पक्ष' पृथ्वी पर चन्द्रदर्शन एवं तिथियाँ पूर्णमासी चंद्र वदि 3 चंद्र वदि 12 चंद्र राहू राहू पृथ्वी पृथ्वी पृथ्वी अमावस चंद्र सुदी 3 चंद्र सुदी 12 राहू रा पृथ्वी पृथ्वी पृथ्वी चित्र क्र. 88 सचित्र जैन गणितानुयोग HAARAA- A GA 121