________________ वायव्य कोण पर्वत मरू कोण SSC भारतीय सूर्य भरत क्षेत्र भारतीय ऐरवतीय सूर्य-श्रावण कृष्णा | ऐरवतीय सूर्य ऐरवत क्षेत्र एकम नये वर्ष के प्रथम दिन जो सूर्य पूर्वी केन्द्र (पश्चिमी सूर्य) शिखरी पर्वत अर्थात् पूर्व दिशा के अंत से (आग्नेय कोण) दक्षिण दिशावर्ती दूसरे अर्धमंडल पर परिभ्रमण प्रारम्भ कर दक्षिण दिशा की ओर गति करता हुआ भरत क्षेत्र को प्रकाशित करता है वह भारतीय सूर्य अथवा पूर्वी सूर्य तथा इसी दिन पश्चिमी केन्द्र अर्थात् वायव्य कोण से उत्तर दिशावर्ती अन्य अर्धमंडल पर परिभ्रमण प्रारम्भ कर उत्तर दिशा की ओर जाकर ऐरावत क्षेत्र को निषध पर्वत प्रकाशित करने वाला सूर्य ऐरवतीय या पश्चिमी सूर्य आग्नेय कहा जा सकता है। (चित्र क्रमांक 78) चुल्लहिमवंत पर्वत दोनों सूर्यों के स्वतन्त्र मार्ग-प्रत्येक संवत्सर (पूर्वी सूर्य) (वर्ष) में भारतीय और ऐरवतीय दोनों सूर्य दक्षिणायन में (आभ्यन्तर से बाह्य मंडल में जाते भारतीय ऐरवतीय सूर्य चित्र क्र. 78| हुए) अपने-अपने स्वतंत्र मंडल पर चलते हैं तथा 183 मंडल पर परिभ्रमण करते हुए 510 योजन का दक्षिणायन में दोनों सूर्यों का स्वतंत्र मार्ग क्षेत्र पार करते हैं। उसमें एक बार भी एक-दूसरे के मंडल का स्पर्श नहीं करते। किन्तु उत्तरायण में (बाहर से अंदर आते हए) ये स्वचलित और परचलित मंडल पर जितना चलते हैं, उसमें एक पूर्ण मंडल के चार दिशा भाग करके इस प्रकार समझा जा सकता है। (चित्र क्रमांक 79) भारतीय ऐरवतीय सूर्य के प्रत्यागमन मंडल मंडल के चार भारतीय सूर्य ऐरावतीय सूर्य विभाग मंडल संख्या मंडल संख्या आग्नेय कोण |92 स्वचलित | 91 स्वचलित वायव्य कोण |91 स्वचलित | 92 स्वचलित ईशान कोण |92 परचलित | 91 परचलित नैऋत्य कोण |91 परचलित | 92 परचलित चित्र क्र.79 गे कीय सय का सर्वे बाहर ऐरवतीय सूर्य InJAPARBA पूर्वी सूर्य * पश्चिमी सूर्य 184 भारतीय सर्य का सा सूर्य की मुहूर्त गति-प्रत्येक मंडल पर सूर्य एक-एक मुहूर्त में जितनी गति करता है, उसे मुहूर्त गति कहते हैं। यहाँ यह तो स्पष्ट है कि एक सूर्य एक अहोरात्रि में आधा मंडल गति करता है और दूसरा सूर्य मंडल उसी अहोरात्रि में शेष आधा मंडल पूर्ण करता है। दोनों सूर्य की एक-एक अहोरात्रि होती है, किन्तु दोनों की 114 AAAAAAEA सचित्र जैन गणितानुयोग न