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________________ सूर्य के उदय-अस्त की व्यवस्था-सूर्य जब उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में उदित होता है तो पूर्व-दक्षिण (आग्नेय कोण) में अस्त होता है। पूर्व-दक्षिण (आग्नेय कोण) में उदित हुआ दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण) में अस्त होता है। दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण) में उदित हुआ पश्चिम-उत्तर (वायव्य कोण) में अस्त होता है और पश्चिम-उत्तर (वायव्य कोण) में उदित होकर उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में अस्त होता है। (चित्र क्रमांक 73) वायव्य (अस्त) शिखरी पर्वत ईशान (उदय) वायव्य (उदय) ईशान (अस्त) शिखरी पर्वत नीलवंत पर्वत नीलवंत पर्वत oo पूर्व पश्चिम पश्चिम महाविदेह मेरू मेरू. महावह पश्चिम महाविदेह मेरू पूर्व महाविदेह महाविदेह निषध पर्वत निषध पर्वत लघु हिमवान पर्वत एहिमवान पर्वत नैऋत्य (उदय) आग्नेय कोण (अस्त) नैऋत्य (अस्त) आग्नेय. (उदय) पूर्व-पश्चिम विभाग में सूर्योदय-सूर्यास्त उत्तर-दक्षिण विभाग में सूर्योदय-सूर्यास्त चित्र क्र.73 जंबूद्वीप में दिन-रात्रि का विभाग-जंबूद्वीप में रात-दिन का विभाग दो सूर्यों के प्रकाश द्वारा होता है। जंबूद्वीप के दो सूर्यों में से एक सूर्य जब दक्षिण-पूर्व दिशा (आग्नेय कोण) में (जंबूद्वीप की जगती से 180 योजन अंदर) उदित होता है, तब उसी सूर्य की समश्रेणी में उत्तर-पश्चिम दिशा (वायव्य कोण) में जंबूद्वीप का दूसरा सूर्य उदित होता है। उस समय भरत और ऐरवत इन दोनो क्षेत्रों में सूर्योदय हुआ कहा जाता है उसके बाद जैसे-जैसे प्रथम सूर्य मेरू से दक्षिण की ओर एवं दूसरा उत्तर की ओर बढ़ता जाता है वैसे-वैसे भरत और ऐरवत के उन-उन क्षेत्रों को प्रकाशित करता जाता है। ___जब भारत सूर्य दक्षिण पश्चिम (नैऋत्य कोण) में आता है। तब पश्चिम महाविदेह में सूर्य उदय होता है और ऐरवत सूर्य उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में आता है तब पूर्व महाविदेह में सूर्य उदय होता है। इसी प्रकार पुनः पश्चिम महाविदेह का सूर्य उत्तर में आकर ऐरवत क्षेत्र को और पूर्व महाविदेह का सूर्य दक्षिण में आकर भरत क्षेत्र को प्रकाशित करता है। इस प्रकार एक सूर्य 30 मुहूर्त अर्थात् एक अहोरात्र में आधे मेरूपर्वत की प्रदक्षिणा करता है और दो अहोरात्र में मेरूपर्वत की पूर्ण प्रदक्षिणा करता हुआ एक मंडल पूर्ण करता है। इससे यह सहज समझा जा सकता है कि अढ़ाई द्वीप में जिसे हम सूर्योदय-सूर्यास्त कहते हैं, वस्तुतः वह सूर्य का उदय या अस्त होना नहीं है। सूर्य के विमान और उसका प्रकाश सदा ही आकाश में रहता है, अर्थात् सूर्य सदा काल 110 सचित्र जैन गणितानुयोग
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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