________________ मंडल संख्या 184 आंतरा 183 उत्तर पश्चिम - पूर्व दक्षिण प्रथम मंडल मडल 184वां सर्व बाह्य मंडल निकटवर्ती मण्डल को सर्वाभ्यन्तर मण्डल' तथा लवण-समुद्र में पहुँच सबसे दूर अन्तिम 184वें मण्डल को 'सर्व बाह्य मण्डल' कहते हैं। मण्डल 184 होने पर भी सूर्य के चलने के मार्ग 183 हैं। जब सूर्य पहले मंडल से परिक्रमा करता हुआ दूसरे मंडल में उस स्थान की सीध में पहुँचता है, तब उसका प्रथम चक्कर पूर्ण होता है। तीसरे मंडल में पहुँचने पर दो और 184वें मंडल में पहुँचने पर 183 चक्कर पूर्ण होते हैं। इसी प्रकार 184वें मंडल से चलकर पुन: पहले मंडल के उस सीध वाले ध्रुव स्थान पर पहुँचने में फिर 183 चक्कर होते हैं। इस प्रकार प्रथम मंडल से अंतिम मंडल में जाकर पुनः प्रथम मंडल में आने पर सूर्य की एक परिक्रमा 183 + 183 = 366 दिन रात में पूरी होती है। ___पहले और सर्वाभ्यन्तरमण्डल से सर्वबाह्यमण्डल में जाते सूर्य के 183 मार्ग अंतिम इन दो मंडलों में सूर्य एक-एक चक्कर लगाता है | अर्थात् इनका स्पर्श एक बार करता है सर्वाभ्यन्तर जबकि शेष 182 मंडल मार्गों पर दो-दो बार गमन करता है। अत: 182 x 2 + 2 = | 366 चक्कर में 366 लवण समुद्र दिन-रात हो जाते हैं। मेरु पर्वत ऐसी एक परिक्रमा से जम्बू द्वीप एक सूर्य संवत्सर अर्थात् एक वर्ष पूरा सर्वबाह्यमण्डल से सर्वाभ्यन्तरमण्डल में जाते सूर्य के 183 मार्ग होता है। आंतरा 183 पश्चिम र पूर्व प्रथम मंडल से अंतिम मंडल तक जाने और पुनः प्रथम मंडल तक आने में मंडल ) घुमाव एक दिशावर्ती ही होता है। अर्थात् सूर्य सदा पूर्व से दक्षिण, पश्चिम उत्तर की तरफ ही बढ़ता है। लवण समुद्र मेरु (चित्र क्रमांक 72) पर्वत जम्बू द्वीप चित्र क्र.72 मंडल संख्या 184 उत्तर दक्षिण सर्वाभ्यन्तर मंडल प्रथम मडल 184वां सर्व बाह्य मंडल सचित्र जैन गणितानुयोग 1095