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________________ तमस्काय का बाह्य दर्शन प्रतर 3 प्रतर 2 NEDA प्रतर 1 6.-7X ब्रह्मा what उनसे भी ऊपर पंचम ब्रह्मलोक कल्प के / रिष्ट विमान नामक प्रस्तर के पास असंख्यात योजन विस्तृत हो गई है। इस प्रकार सम्पूर्ण तमस्काय का आकार नीचे सुराही के मुख जैसा और ऊपर मुर्गे के पिंजरे जैसा है। इसमें सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र नहीं हैं, किन्तु इसके किनारे ज्योतिष विमान हो सकते हैं। इसमें उनकी प्रभा पड़ती है, किन्तु प्रगाढ़ अंधकार के कारण वह निष्प्रभ हो जाती हैं। यहाँ न ग्राम है न मकान है। यह इतनी विस्तारयुक्त है कि एक चुटकी में जंबूद्वीप की इक्कीस परिक्रमा कर लेने वाला देव उत्कृष्ट छः माह तक इसमें चले तो भी तमस्काय का उल्लंघन नहीं कर पाता। तमस्काय संख्यात और असंख्यात हजार योजन माहेन्द्र सनत्कुमार तमस्काय TECENTRAwinr217hi.NAwaruurMatrissainram A VASI . tomatlab -.mms.aslil AMAttatram Ans...MATO/ AM MET 1130 इशान सीधर्म SSETTER TCSRA CRIMAashikarannamaarmAAMTAS LALLAnnadatakoAMANPORN emainderinANARTEEN RADHits-aftNEPATIALA भित्ति आकार का 11721:योजन द JASTHAN तमस्काय तमस्काय के अंदर का दृश्य चित्र क्र. 64 अरुणवर समुद्र असंख्यातवाँ समुद्र विस्तृत है। इसमें बड़े-बड़े बादल बरसते है। देव, असुरों के द्वारा भी यहाँ बादल सी गड़गड़ाहट, बिजली और मेघवर्षा होती है, परन्तु देवकृत होने से वह अचित्त है। यह भयानक रोमहर्षक काले वर्ण की होने से देव भी वहाँ डर के कारण जाने को तैयार नहीं होते। कभी जाना पड़ भी जाए तो शीघ्र ही उसे पारकर पुन: लौटते हैं। इसलिये इसका तमस्काय, यह नाम जल की मुख्यता से नहीं, बल्कि अंधकार की मुख्यता से दिया गया है। इसके अन्य 13 नाम इस प्रकार हैं-(1) तम-अंधकार रूप 1721 यो. ऊँची अरूणवर समुद्र चित्र क्र.65 102 Aasaas सचित्र जैन गणितानयोग
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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