________________ नंदीश्वर द्वीप उत्तर चार दिशा में - 13x4 - 52 पर्वत हैं। प्रत्येक पर्वत के ऊपर एक-एक सिद्धायतन है। इसलिये नन्दीश्वर द्वीप में 52 सिद्धायतन हैं। ऐसी दिव्य रचना जगत के किसी भी द्वीप में नहीं है। जम्बू द्वीप पर्वत पश्चिम अनेक उत्पात पर्वत सिद्धायतन बावदा रतिकर पर्वत दधिमुख पर्वत दक्षिण84,000 योजन ऊँचा अंजनक पर्वत चित्र क्र. 60/ जब तीर्थंकर भगवान के कल्याणक होते हैं तब सौधर्मेन्द्र आदि इन्द्र ‘पालक' नामक विमान जो एक लाख योजन प्रमाण है। उसमें बैठकर नंदीश्वर द्वीप' पर उतरते हैं और यहाँ से अपने-अपने विमानों का संक्षेप कर भरत आदि क्षेत्रों में जाते हैं। (चित्र क्रमांक 60) कुण्डल दीप यह 11वाँ द्वीप है इसके मध्य भाग में वलयाकार मानुषोत्तर पर्वत की तरह ही सिंह निषादी आकार का 'कुण्डलगिरि पर्वत' है। इसके दक्षिण दिशा की ओर सौधर्मेन्द्र के चार लोकपाल-सोम, यम, वैश्रवण एवं वरूण तथा उत्तर दिशा की ओर ईशानेन्द्र के चार लोकपालों की राजधानियाँ हैं। (चित्र क्रमांक 61) रूचक दीप जीवाभिगम सूत्र में पन्द्रहवें द्वीप के रूप में इसका उल्लेख है। रूचक द्वीप के मध्य भाग में मानुषोत्तर पर्वत के समान वलयाकार रूचकगिरि' नामक पर्वत है। यह 84,000 योजन ऊँचा, मूल में 10,022 योजन, मध्य में 7023 योजन और शिखर पर 4024 योजन चौड़ा है। रूचकगिरि पर्वत के 40 कूट (शिखर) हैं। एक-एक कूट पर एक-एक दिशाकुमारी का भव्य प्रसाद है। अतः 40 कूट पर 40 प्रासादों में 40 दिशाकुमारियाँ निवास करती हैं। इस रूचकद्वीप तक जंघाचारण मुनि जाते हैं, इसके आगे कोई भी मनुष्य नहीं जा सकता। रूचक द्वीप से पूर्व के द्वीप-समुद्रों का विष्कम्भ संख्यात योजन है। रूचक द्वीप व उसके बाद स्वयम्भूरमण समुद्र तक के द्वीप-समुद्र असंख्यात योजन विष्कम्भ वाले हैं। (चित्र क्रमांक 62) 98 सचित्र जैन गणितानुयोग