________________ 14. चुल्लहेमवन्त पर्वत तथा शिखरी पर्वत की चौड़ाई प्रत्येक 105212/19 x 2 = 210424/19 योजन हेमवन्त क्षेत्र तथा हेरण्यवत क्षेत्र की चौड़ाई प्रत्येक 21055/12 x 2 | = 421010/19 योजन | महाहिमवंत तथा रूक्मि पर्वत की दक्षिणोत्तर चौड़ाई प्रत्येक 421010/19 x 2 | = 842020/19 योजन | हरिवर्ष क्षेत्र व रम्यक क्षेत्र की दक्षिणोत्तर चौड़ाई प्रत्येक 84211/19 x2 | = 16842/19 योजन 13. | निषध पर्वत तथा नीलवंत पर्वत की चौड़ाई प्रत्येक 16,842-/19 x 2 = 336844/19 योजन | देवकुरू क्षेत्र तथा उत्तरकुरू क्षेत्र की दक्षिणोत्तर चौड़ाई 11842-/19 x 2 = 236844/19 योजन 15. | मेरूपर्वत का दक्षिणोत्तर विष्कम्भ = 10,000 योजन दक्षिणोत्तर की कुल चौड़ाई = 45,00,000 योजन अढ़ाई दीप के बाहर दीप-समुद्र पुष्कर द्वीप के बाद 32 लाख योजन का पुष्कर समुद्र, पश्चात् दुगुने-दुगुने विस्तार वाले वरुणवर द्वीप-वरुणवर समुद्र, क्षीरवर द्वीप-क्षीरवर समुद्र, घृतवर द्वीप-घृतवर समुद्र, क्षोदवर द्वीप-क्षोदवर समुद्र आदि असंख्य द्वीप और समुद्र हैं। ___ इनमें पुष्कर समुद्र का पानी मीठा है तथा पाचक भी। वरूण समुद्र का जल मदिरा जैसा है। 'क्षीरसमुद्र' का जल चक्रवर्ती के दूध जैसा स्वादिष्ट है। इस जल से देव मेरूपर्वत पर तीर्थंकरों का अभिषेक करते हैं। 'घृतवरसमुद्र' का जल गाय के घी जैसा है। मन:शील सागर और स्वयंभूरमण समुद्र का जल सामान्य है तथा 'इक्षुवर समुद्र' एवं शेष असंख्यात समुद्रों का पानी इक्षु के रस जैसा स्वादिष्ट है। नन्दीश्वर दीप अढ़ाई द्वीप के बाहर मध्यलोक का यह आठवाँ द्वीप है। यह द्वीप अत्यंत रमणीय व मनोहर है। इसकी दिव्य-भव्य प्राकृतिक संरचना वैभव सम्पन्न होने से इसका नाम 'नंदीश्वर द्वीप' रखा। इस द्वीप में कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ मास के अंतिम आठ दिनों में (तीनों चौमासी के समय) तथा तीर्थंकरों के पंच कल्याणक आदि शुभ दिनों में देवता अष्टाह्निका (अठाई) महोत्सव करते हैं। इस द्वीप की चौड़ाई 163 करोड़ 84 लाख योजन है। इसमें चारों दिशा के मध्य में 84 हजार योजन ऊँचे श्यामवर्ण वाले चार 'अंजनगिरि पर्वत' है। अंजनगिरि 'पर्वत' के चारों ओर एक-एक लाख योजन के अंतर पर 1,00,000 योजन लम्बी-चौड़ी तथा दस योजन गहरी 4 x 4 = 16 बावड़ी है। इन सब के मध्य भाग पर उलटे प्याले के आकार वाले श्वेतवर्णीय दधिमुख' नामक 16 पर्वत हैं, जो 64 हजार योजन ऊँचे और 1 हजार योजन गहरे तथा 10,000 योजन चौड़े हैं। प्रत्येक दधिमुख पर्वत पर एक सिद्धायतन है, जो 100 योजन लम्बे, 50 योजन चौड़े और 72 योजन ऊँचे है। द्वीप के मध्य भाग में चारों विदिशा में चार 'रतिकर पर्वत' हैं। वे 1,000 योजन ऊँचे 100 कोस गहरे और 10,000 योजन लम्बे-चौड़े पलंग संस्थान वाले हैं। इस तरह एक दिशा में 1 अंजनगिरि 4 दधिमुख पर्वत और 8 रतिकर पर्वत हैं। चार विदिशा के रतिकर पर्वत से लाख योजन दूर, लाख योजन प्रमाण वाली सौधर्मेन्द्र एवं ईशानेन्द्र की 8-8 अग्रमहिषियों की 8-8 राजधानी है। इस प्रकार 16 राजधानियाँ हैं। सचित्र जैन गणितानुयोग 97