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________________ अढ़ाई द्वीप में तीर्थंकरों की संख्या अढ़ाई द्वीप में पाँच भरत एवं पाँच ऐरावत क्षेत्र में सदाकाल तीर्थंकर नहीं होते, किन्तु महाविदेह की 160 ही विजय तीर्थंकरों की उत्पत्ति के योग्य है। अर्थात् सभी विजयों में तीर्थंकर सर्वकाल उत्पन्न हो सकते हैं। तथापि सभी विजयों में तीर्थकर वर्तमान रहें यह आवश्यक नहीं और सभी विजय खाली रहे यह भी सम्भव नहीं। कम से कम 20 और अधिक से अधिक 160 तीर्थंकर, नित्य ही महाविदेह में विचरण करते हैं। एक विजय में एक ही तीर्थंकर हो सकता है, अधिक नहीं। - महाविदेह में जब कोई विहरमान तीर्थंकर रूप में होता है, उस समय अन्य कोई विहरमान बनने वाली आत्मा श्रमण पर्याय में, कोई राज्यावस्था में, कोई बाल्यावस्था में अन्य-अन्य विजयों में होती है। एक तीर्थंकर की 84 लाख पूर्व की आयु में उसके पीछे एक-एक लाख पूर्व के अन्तराल में 83 विहरमान होते हैं। इस संख्या को 20 से गुणित करने पर (83 x 20 = ) 1,660 विहरमान होते हैं। उनमें वर्तमान 20 तीर्थंकर मिलाने पर 1,680 की जघन्य संख्या आती है। और जब महाविदेह के उत्कृष्ट 160 तीर्थंकरों को 83 से गुणित किया जाए तो (160 x 83 =) 13,280; उनमें 160 वर्तमान विहरमान मिलाने पर 13,440 तीर्थंकर होते हैं। ये सभी तीर्थंकर एक-दूसरे से मिलते नहीं, इतनी क्षेत्रीय दूरी सभी में होती है। भरत-ऐरावत क्षेत्र में काल परिवर्तन के कारण न तो सदा तीर्थंकर होते हैं, न ही उन सभी का एक जैसा अन्तर है। यहाँ काल के प्रभाव से शासन विच्छेद की स्थितियाँ आती रहती हैं, किन्तु महाविदेह में कभी शासन विच्छेद नहीं होता। अढ़ाई द्वीप के शाश्वत पदार्थ जम्बूद्वीप धातकीखंड अर्द्धपुष्कर कुल द्वीप में 1. | वर्षधर क्षेत्र 14 2. वर्षधर पर्वत 7 पर्वत पर कूट 467 942 962 2371 अभिषेक शिलाएँ जन्माभिषेक के सिंहासन 12 ऋषभकूट पर्वत 34 68 68 170 कोटिशीला (वासुदेव उठाते हैं) -34 6 8/ 6 170 | वैताढ्य पर्वत की गुफाएँ 136 136 वैताढ्य पर्वत के बिल 144 288 288 10. | मागध आदि तीर्थ 204 - 510/ क्रम नाम 14 14 शिलाएँ 20 12 1. 8. 340/ 720 102 204 94 सचित्र जैन गणितानुयोग
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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