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________________ इसी प्रकार शिखरी पर्वत के पूर्व-पश्चिमी चरमान्त से निकली हुई चार गोलाकार पंक्तियों पर भी पूर्वोक्त नाम एवं प्रमाण वाले 28 द्वीप हैं। ये सब मिलकर 28 + 28 = 56 अन्तरद्वीप होते हैं। ये सभी द्वीप दो कोस ऊँची एवं 500 योजन चौड़ी पद्मवरवेदिका से परिवृत हैं। वेदिका रमणीय वनों से सुशोभित है। एकोरूकादि 28-28 द्वीप के सभी मनुष्य और स्त्रियाँ सुंदर अंगोपांग युक्त, प्रमाणोपेत अवयव वाले, चन्द्र के समान सौम्य और अत्यन्त भोगश्री सम्पन्न होते हैं। प्रकृति से भद्रिक होते हैं, एक दिन के बाद आहार की इच्छा होती है वह कल्पवृक्षों से पूर्ण होती है। ये मनुष्य 800 धनुष ऊँचे और पल्योपम के असंख्यातवें भाग की आयु वाले सर्वरोग उपद्रव रहित होते हैं। छह मास आयु शेष रहने पर युगलिक स्त्री सन्तान को जन्म देती है। यहाँ सदा सुषम-दुषमा काल की स्थिति रहती है। ये भोगभूमिज मनुष्य सुख पूर्वक आयु पूर्ण कर भवनपति या वाणव्यन्तर देवों में जाकर उत्पन्न होते हैं। 16,000 यो. धातकी खण्ड जम्बूद्वीप ऊँचाई 700 यो. M 1000 यो. गहराई S गोतीर्थ भूमि गोतीर्थ भूमि [10000 यो समतल लवण समुद्र जंबूद्वीप की जगती के बाहर साधिक तीन लाख योजन की परिधि लवण समुद्र में गोतीर्थ और जल शिखा वाले जम्बूद्वीप को घेरे हुए दोनों ओर से वलय-चूड़ी के आकार का लवण समुद्र है। इसका चक्रवाल विष्कम्भ दो लाख योजन का है। इसकी परिधि 15 लाख 81 हजार 139 -95000 यो. -95000 यो. योजन से कुछ अधिक है, जो जम्बूद्वीप की परिधि से लगभग 5 लवण समुद्र गुनी अधिक है। गहराई में यह समुद्र लवण समुद्र किनारे पर बाल के अग्रभाग जितना चित्र क्र. 52 है किंतु आगे क्रम से इसकी गहराई बढ़ती चली गई है। लवण समुद्र के दोनों किनारों से 95 हजार योजन तक की भूमि क्रमशः नीचे उतरती चली गई है। इस कारण लवण समुद्र की गहराई भी क्रमश:बढ़ती गई है। इस ढलान वाली जगह को गोतीर्थ कहते हैं। दोनों तरफ के गोतीर्थ के मध्य 10,000 योजन का भूमिभाग समतल है। वहाँ लवण समुद्र की 1000 योजन गहराई है। फिर क्रमशः कम होते-होते धातकी खण्ड द्वीप के समीप पुनः बाल के अग्रभाग जितनी ही गहराई है। इसका पानी नमक जैसा खारा, कटुक व अमनोज्ञ है। यह पद्मवर वेदिका और वनखण्ड से क्रमशः चारों तरफ से घिरा हुआ है। चारों दिशाओं में विजय आदि चार द्वार हैं। जिसका सम्पूर्ण वर्णन जम्बूद्वीप के समान है। (चित्र क्रमांक 52-53) इस लवण समुद्र में उत्सेधांगुल से 500 योजन तक के देहधारी मत्स्य होते हैं। कालोदधि समुद्र में 700 योजन एवं स्वयंभूरमण नामक अन्तिम समुद्र में 1000 योजन के मत्स्य होते हैं। अन्य समुद्रों में जलचर जीव नहीं होते हैं। 84AAAAAAAEA सचित्र जैन गणितानुयोग 10
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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