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________________ जीवन और मृत्यु की वक्र रेखा 61 हैं, जो उसके क्रियाकलाप का स्पष्ट अभिलेख देगा / जब ईंधन कम हो जाता है तब पिस्टन का आघात तथा अभिलेख की ऊपर-नीचे होने वाली क्रिया बन्द हो जाती है। इंधन की समाप्ति से इसका बन्द होना अस्थायी होता है, क्योंकि फिर से ईंधन की पूर्ति कर देने पर गति आरम्भ हो जाती है। किन्तु यन्त्र के टूट जाने या दाँते फँस जाने पर यन्त्र का कार्य स्थायी रूप से भी स्थगित हो सकता है। इसी प्रकार यन्त्र में भी पहले से संचित शक्ति के ह्रास के कारण अस्थायी रूप से जीवन का क्रियाकलाप रुक सकता है और जीवित यन्त्र के अन्दर कहीं उलझाव हो जाने पर यह स्थायी रूप से भी बन्द हो सकता है। भिन्न-भिन्न विषों के प्रभाव से नाड़ी-स्पन्दन कम होते-होते मृत्यु के समय बिलकुल समाप्त हो जाता है। जीवित पदार्थ के प्रत्येक कण को हम परमाणविक यन्त्रों (Molecular machines) का समूह मान सकते हैं। जीवित से मृत दशा में परिवर्तन अणु-सक्रियता की दशा से अन्तःपाश परिदृढ़ता (Interlocked rigidity) की दशा में बदलना है। देखा जाता है कि एक पूर्ण जीवित सक्रिय मनुष्य प्रमीलक के प्रभाव से एकाएक अचेत हो जाता है / समयोचित उपचार होने पर वह इस जड़ता का परित्याग कर फिर जीवित हो सकता है / किन्तु यदि विलम्ब हो जाता है तो वह जीवन से निर्जीविता के क्षेत्र में पहुंच जाता है / इस प्रकार जीवन और मृत्यु के बीच एक बहुत ही सूक्ष्म रेखा-सीमा निर्धारित रहती है। वह क्षण कितना निर्णायक होता है जब कि जीवित कण अस्थिर दशा में रहते हैं : किंचित् उधर झुका और जीवन-यन्त्र मृत्यु के पाश में जकड़ जाता है / इसी महत्तम क्षण में जीवन और उसकी समाप्ति का नाटक खेला जाता है। इस निर्णायक घड़ी में यदि हम अणुसंघर्ष के इतिहास की खोज कर पायें, केवल तभी हमें मृत्यु के रहस्य का पता चल सकेगा। वह अगोचर, आन्तरिक सघर्ष जो जीवन और मृत्यु की शक्तियों के बीच संग्राम है, कभी कभी मरते हुए अवयवों के स्वलिखित अभिलेख द्वारा बहुत ही स्पष्ट प्रदर्शित हो जाता है। __ मृत्यु का गोचर संकेत . विवर्णता वनस्पति की मृत्यु का एक चिह्न है / उसकी मृत्यु का सहज उपाय है कि वनस्पति-पौधे को पानी में रखा जाय, और उसके तापमान को धीरे-धीरे बढ़ाया जाय, जब तक प्राणहर क्षण में यह जलकर मर न जाय / यदि हम एक फूल का हिस्सा लें, जैसे श्वेत धत्तूर (Datura alba) का दुग्धधवल स्त्री-केसर (Pistil), वह मृत्यु के समय भूरा हो जाता है। इससे भी आश्चर्यजनक है चमकीले
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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