________________ 51 फरीदपुर का प्रार्थनारत ताड़ वृक्ष में प्राणयुक्त मालूम होता है। कभी-कभी यह पृथ्वी पर पूरी लम्बाई में लेट जाता है और फिर अपनी पूरी लम्बाई में सीधा खड़ा हो जाता है। भले ही यह अविश्वसनीय मालूम होता हो पर यह सत्य है और इसने उन सैकड़ों लोगों को आश्चर्यचकित किया है, जिन्होंने इसे देखा है।" हाल ही में दक्षिणी अफ्रीका के एक नारिकेल कृषक ने भी एक ऐसी ही घटना का उल्लेख मुझसे किया। समुद्र की शक्तिशाली वायु के कारण उसके खेत में जो नारिकेल वृक्षों की कतारें हैं वे सब एक ओर को कुछ झुकी हुई हैं। उसके लिए यह एक सतत आश्चर्य का विषय रहा है कि प्रातःकाल ये वृक्ष पूरी तरह से सीधे खड़े रहते हैं और फल तोड़ना लगभग असम्भव-सा होता है और अपराह्न में वे ही वृक्ष इतने उदार हो जाते हैं कि झुक जाते हैं और उनके फलों को तोड़ना अत्यधिक सुगम हो जाता है। वृक्ष का थोड़ा भी झुकाव उसकी ऊपर-नीचे की गति की विशिष्टता का आभास देता है। यह गति इतनी मन्द होती है कि यों ही देखने वाले को उसका आभास नहीं होता। किन्तु स्वतःअभिलेखक द्वारा जो गति अभिलिखित होती है वह अत्यधिक स्पष्ट और निश्चित होती है। फरीदपुर के ताड़ वृक्ष की तरह वृक्षों की गति दो कारणों से इतनी अधिक स्पष्ट होकर ध्यान आकर्षित करती हैं;प्रथम भू-अभिवर्तनीय (Geotropic) क्रिया, जिसकी भिन्नता पर इसकी गति निर्भर है। यह क्रिया पेड़ के झुके रहने पर अधिक शक्तिशाली होती है और उसके सीधे रहने पर कम / झुके हुए वृक्ष की गति अधिक ध्यान आकर्षित करती है, क्योंकि उसके संदर्भ के लिए पृष्ठभूमि में स्वयं पृथ्वी एक स्थिर वस्तु का काम करती है। किन्तु सीधे खड़े वृक्ष की गति अदृश्य होती है क्योंकि उसकी पृष्ठभूमि में केवल शून्य आकाश होता है। _ घटना का स्पष्टीकरण आगे के अध्याय में कुमुदिनी की पंखुड़ियों की गति का उल्लेख किया जायगा। यह गति तापमान की भिन्नता से प्रेरित वृद्धि की भिन्नांशिकता द्वारा सम्पादित होती है। प्रौढ़ और दृढ़ वृक्षों के विषय में किसी और स्पष्टीकरण की खोज करनी होगी। मैं यहाँ उन बहुत से संपरीक्षणों का विवरण नहीं दे सकूँगा जिनके द्वारा उन बहुत सी क्रियाओं के बारे में पता चला जो पहले अज्ञात थीं, जैसे भूम्यावर्ती प्रतिक्रिया पर तापमान का प्रभाव / वृक्ष का कोई भी अंग, स्तम्भ, शाखा या पत्ती जब टेढ़ी उगती है, गुरुत्वाकर्षण (Gravity) की उद्दीपना उसे ऊपर की ओर उठाती है। पृथ्वी पर किसी गमले के