________________ फरीदपुर का प्रार्थनारत ताड़ वृक्ष 46 __ स्वयं वृक्ष द्वारा किये गये अभिलेख से ही यह स्पष्ट हो गया कि इसका नत होना अपने चरम तक ठीक प्रार्थना के समय पर नहीं पहुँचता था; किन्तु जो मनुष्य दैवी शक्ति का अभ्यारोपण करने पर तुले ही हुए हैं, उनके विश्वास पर इतनी तुच्छ भिन्नता का कोई प्रभाव नहीं होता। गति के कारण का प्रकटीकरण - प्रति दिन की गति के संभव स्पष्टीकरण समय-समय पर बदलती हुई अवस्थाएं, जैसे प्रकाश और तापमान आदि हो सकते हैं / जैसा हम पहले देख चुके हैं, प्रकाश प्रभावी कारक नहीं हो सकता था। इसकी पुष्टि नित्य की गति के वक्र के और अधिक सूक्ष्म अध्ययन से भी हुई। यदि गति का कारण प्रकाश होता है तो 'एक चरम' मध्याह्न में और दूसरा उसके विपरीत मध्य रात्रि में होता। किन्तु बजाय इसके हमने पाया है कि उच्चतम बिन्दु मध्याह्न में न होकर सात बजे प्रातः होता है। और उधर 'न्यूनतम बिन्दु' मध्य रात्रि में न होकर अपराह्न में होता है। .. दसरी ओर, तापमान की भिन्नता को लेने पर फौरन देखा गया कि वृक्ष की गति का वक्र तापमान की भिन्नता के वक्र का लगभग एकदम प्रतिरूप था। वृक्ष का उठना तापमान के गिरने का अनुसरण कर रहा था और वृक्ष का गिरना तापमान के उठने से सम्बन्धित था। वृक्ष की गति तापमान की भिन्नता से कुछ पिछड़ रही थी। और उसके दो कारण थे / वृक्ष के मोटे धड़ को अपने आस-पास के तापमान को ग्रहण करने में समय लगता था। प्रतिक्रिया के विलम्ब का दूसरा कारण था-दैहिक जड़ता। भौतिक या दैहिक / * * यह प्रमाणित करने के बाद कि गति का कारण तापमान की भिन्नता थी, अब यह देखना बाकी है कि यह केवल भौतिक विस्तार और संकुचन के ही कारण थी या जीवन की किसी विशिष्ट प्रतिक्रिया के कारण। इसकी निश्चित परीक्षा तो तभी होगी जब देखा जाय की वृक्ष की मृत्यु के बाद क्या हुआ / इस प्रकार की स्थिति में भौतिक गति तो चलती रहेगी, किन्तु दैहिक गति लुप्त हो जायगी। इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने के लिए इस अद्वितीय वृक्ष के, जिसकी इतनी श्रद्धा की जाती थी, जीवन से खेलना तो असम्भव था। किन्तु एक वर्ष बाद एक बार जब बंगाल के राज्यपाल लार्ड रोनाल्ड ने, जो मेरे इसी विषय के एक भाषण में सभापतित्व कर रहे थे, भाषण के बीच में ही बताया कि उनके पास अभी-अभी उसी समय उनके फरीदपुर-स्थित एक