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________________ फरीदपुर का प्रार्थनारत ताड़ वृक्ष इस रहस्य के पीछे क्या कारण हो सकता था? प्रतिदिन यह घटना घटती थी और बदलने वाले कारक केवल प्रकाश और तापमान ही थे। तब क्या इसका कारण प्रकाश था? यह सम्भव नहीं था क्योकि इस क्रिया के लिए यह आवश्यक था कि जीवित ऊतकों से प्रकाश का मेल हो। किन्तु मृत पत्तियों के निचले भाग जीवित ऊतकों पर ऐसे छाये थे कि प्रकाश वहाँ तक नहीं पहुंच सकता था। केवल बदलता हुआ तापमान ही एक और कारक था। यह वृद्धि पर प्रभाव डालकर गति उत्पन्न करता है। जैसा कि आगे के अध्याय में नलिनी (Water lily)की गति के वर्णन से स्पष्ट है। किन्तु यह खजूर का पेड़ प्रौढ़ था और इसकी सक्रिय वृद्धि की अवस्था नहीं थी। इस समस्या का समाधान केवल एक ऐसे यन्त्र से ही हो सकता था, जो दिनरात बराबर उस वृक्ष की गति का अभिलेख लेता--ऊपर की गति का अभिलेख ऊपरी झुकाव में और नीचे की गति का निचले झुकाव में। साथ ही साथ उसी अभिलेख-पट्ट पर एक धात्विक तापमान यन्त्र (Mettallic thermometer) द्वारा बदलते हुए तापमान का भी अभिलेख होता। तापमान की वृद्धि तापवक्रता द्वारा विदित होती और इसका क्षय इसके विपरीत वक्र से। आगे चित्र 34 में दिये हुए चित्र द्वारा अभि लेख-यन्त्र का सिद्धान्त समझा जा सकता है। आरम्भ में अभिलेखक को वृक्ष में लगाने की आज्ञा, उद्यान-स्वामी से मिलने में कुछ कठिनाई हुई / उसको भय था कि इस अधार्मिक विदेशी लगने वाले यन्त्र के सर्पक से उस वृक्ष की दैवी शक्ति लुप्त हो जायगी। मैंने उसका यह भय यह अश्वासन देकर किसी प्रकार दूर किया कि यह यन्त्र मेरी ही प्रयोगशाला में भारत में बनाया गया है तथा इसको उस वृक्ष से संयुक्त करने वाला मेरा सहकारी एक पुजारी का पुत्र है। ___ इसके द्वारा प्राप्त होने वाले परिणाम आश्चर्यजनक थे। सामान्यतया देखने वालों को लगता था कि यह वृक्ष सूर्योदय के.समय उठ जाता था और सूर्यास्त के समय नत हो जाता था। किन्तु जो सतत अभिलेख लिया गया, उससे ज्ञात हुआ कि यह कभी आराम नहीं करता था। इसकी गति सतत थी जो समय-समय पर बदलती रहती थी (चित्र 33) / यह गति निष्क्रिय नहीं थी अपितु एक ऐसे सक्रिय बल से प्रभावित थी जो एक मनुष्य को पृथ्वी से उठा लेने के लिए यथेष्ट था। . इस वृक्ष की सबसे अधिक ऊँचाई प्रातःकाल सात बजे होती थी। इसके बाद तेजी से यह गिरने लगता था। नीचे गिरने की गति 3.15 बजे अपराह्न तक अपने चरम तक पहुँच जाती थी। इसके पश्चात् यह धीरे-धीरे अपने को उठाना आरम्भ करता था, फिर कुछ जल्दी-जल्दी, जब तक, जैसा पहले कहा गया है, दूसरे दिन प्रातः सात बजे तक यह अपनी चरम ऊँचाई तक नहीं उठ जाता था।
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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