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________________ भेषज-उपचारित वनस्पति 27 क्लोरोफार्म इससे अधिक तीव्र प्रमीलक है और यद्यपि यह अधिक प्रभावी है किन्तु इसकी मात्रा सहज ही बढ़ायी जा सकती है जिसका परिणाम घातक हो सकता है। आइये अब देखें कि ये सब या इनमें से एक भी प्रतिक्रिया, जो मनुष्य और पशुजीवन में इतनी स्पष्ट है, क्या वनस्पति जीवन में भी है। सर्वप्रथम हमें एक ऐसा उपाय ढूँढ़ना पड़ेगा जिससे वनस्पति पर विभिन्न गैसों और प्रमीलक वाष्पों का प्रभाव डाला जा सके। इसके लिए हम पौधे को एक काँच-मण्डल (ग्लासचैम्बर) में, जिसमें प्रवेश और निष्क्रमण की दो नलियाँ लगी रहती हैं, बन्द कर देते हैं। तब इस मण्डल में गैसें और वाष्प भरी जाती हैं / वायु निष्क्रमण-नली से बाहर निकल जाती है। फिर उसके पश्च-प्रभाव की परीक्षा के लिए शुद्ध वायु भरी जा सकती है। यदि गैसों का पौधे पर प्रमीलक-प्रभाव अस्थायी है, तब तो शुद्ध वायु द्वारा उसे पुनः चेतन किया जा सकता है। किन्तु यदि प्रमीलक की मात्रा सुरक्षा-सीमा को पार कर जाती है या यदि गैस अत्यधिक विषाक्त होती है, तो मृत्यु विजयी होती है, और चेतना के लौटने की सम्भावना नहीं रहती। तरल औषधियों को हम पौधों की जड़ों में डालते या उनकी कटी शाखाओं के छोरों पर लगाते हैं और वनस्पति के चूषण से वे सभी ऊतकों में फैल जाती हैं। अनुसार जो प्राणी के लिए मृत्युदात्री है वही वनस्पति के लिए जीवनदानी है। यह कार्बनिक अम्ल गैस मैं सर्वप्रथम कार्बनिक अम्ल गैस के प्रभाव का वर्णन करूंगा। लोकमत के अनुसार जो प्राणी के लिए मृत्युदात्री है वही वनस्पति के लिए जीवनदात्री है। यह co. चित्र १६--कारबोनिक एसिड गंस का प्रभाव /
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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