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________________ वनस्पतियों के स्वलेख मुड़ जाते हैं / क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि हम एक पौधे में इस तरह की गति का प्रकाशन देखकर मुग्ध होते है ? यदि किसी भी अन्तिम पत्ती के जोड़े को चिकोट लिया जाय या कैंची से काटा जाय या गर्म शलाका से छुआ जाय तो एक आवेग-सा अन्दर की तरफ यानी तने की ओर चलता है / भिन्न-भिन्न पत्तियों के जोड़े एक के बाद दूसरे यथाक्रम ऊपर की ओर मुड़ते जाते हैं। उप-पर्णवृन्त एकत्रित होते जाते हैं और मुख्य पर्णवृन्त झुक जाता है। यदि बहुत अधिक होता है तो प्रदीपना पूरे स्कन्ध की लम्बाई में फैल जाती है जिससे दूर के दूसरे पर्ण भी झुक जाते हैं। अब हम अपना ध्यान पर्णवन्त की गति पर सीमित रखकर यह अनुसंधान करें कि यह गिरता क्यों हैं / ऊतकों की गद्दी, पत्तों के जोड़ या पीनाधार को देखिये जो चर अंग है और जो पर्ण की गति के लिए कब्जे का काम करता है। पीनाधार का निम्नार्ध अत्यधिक संवेदनपूर्ण है, और ऊर्ध्व अर्ध उससे कम / सावधानी से मापकर मैंने देखा है कि पीनाधार का निम्नार्ध ऊर्ध्वाध से अस्सी गुना अधिक संवेदनपूर्ण है / केवल यही नहीं, निम्नार्ध ऊर्धि से कहीं अधिक सक्रियतापूर्ण चर है। इसलिए हम जब पर्ण को उत्तेजित करते हैं तो दोनों आधे सिकुड़ते हैं किन्तु निम्नाधं के अधिक सिकुड़ने से पर्ण नीचे झुक जाता है / पीनाधार के निम्नार्ध की वास्तविक सिकुड़न बहुत कम होती है, किन्तु चूँकि लम्बा पर्णवृन्त आवर्धक अभिसूचक का काम करता है, अनुक्रिया की गति बहुत ही स्पष्ट हो जाती है। अनुक्रिया-अभिलेखक अब मैं उत्तेजना द्वारा अनुक्रिया की गति के अभिलेख की विधि का वर्णन करूंगा। लाजवन्ती की एक पत्ती एक पतले धागे के द्वारा उत्तोलक या लीवर (जो मणि-भारु से विवर्तित रहता है) के एक छोर से बँधा रहता है। उत्तोलक के दूसरे छोर पर एक छोटा भार बँधा रहता है जो धागे को तना हुआ रखता है। उत्तोलक के मध्य भाग से और उसके समकोण पर एक पतला और आखिरी हिस्से में मुड़ा हुआ तार जुड़ा रहता है, जो अभिलेखक का काम करता है / इस तार का एक छोर एक धूमित काँच पट्ट को छूता है जिस पर अभिलेख किया जाता है, जो गुरुत्व-क्रिया (Action of gravity) द्वारा घड़ी से नियमित गति पर फिसलने दिया जाता है। हम पौधों को उन्हीं अभिकर्ताओं द्वारा उद्दीप्त कर सकते हैं जो मनुष्य को उद्दीप्त
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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