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________________ 206 वनस्पतियों के स्वलेख है कि जीवन पीड़ा से भर उठे। हम में बाह्य विश्व को परिवर्तित करने की शक्ति तो है नहीं, क्या तंत्रिका-आवेग को नियंत्रित करना सम्भव है, जिससे एक मामले में यह अत्यधिक बढ़ जाय और दूसरे में घट जाय या समाप्त हो जाय ? क्या विज्ञान से ऐसी किसी संभावना की आशा है ? यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रश्न है / तंत्रिका-परिपथ तंत्रिका-आवेग के आपरिवर्तन और उसके परिणामस्वरूप होने वाली संवेदना की समस्या का हल आवेग के पारेषण के समय और उसे प्रभावित करने के साधन के , आविष्कार पर निर्भर है, ताकि इसके द्वारा आवेग बढ़ाया या घटाया जा सके / यह कैसे हो ? ___ तंत्रिका-परिपथ एक ऐसे वैद्युत परिपथ की तरह है जिसमें पारेषण-यंत्र और : रिसीवर (Receiver) एक संवाही तन्तु से युक्त रहते हैं। इस संवाहक पर भेजे हुए अदृश्य विद्युत्-आवेग का पता गैलवनोमीटर की सुई के स्फुरण से चलता है। धारा के अत्यधिक मन्द होने पर किसी भी स्फुरण को अनुक्रिया नहीं होती; गैलवनोमीटर की अनुक्रिया प्रतिबोधित होती है और फिर आघात देने वाली वैद्युत शक्ति की तीव्रता के बढ़ने पर बढ़ती है। जब यह शक्ति अत्यधिक होती है, सुई की अनुक्रिया प्रचण्ड हो जाती है। ___तंत्रिका-परिपथ में समानान्तर प्रभावों का प्रदर्शन अधिक ठोस रूप में गैलवमोमीटर की सुई के स्थान पर एक संकोची पेशी को रख कर किया जा सकता है। यही प्रतिबोधी मस्तिष्क के स्थान पर भी रखा जा सकता है। तंत्रिका के अन्त में एक अत्यधिक मन्द उद्दीपना देने पर एक ऐसा आवेग होता है जो अनुक्रिया की सीमा से नीचे रहता है / मध्यम तीव्रता की उद्दीपना द्वारा एक ऐसा आवेग होता है, जो मध्यम स्फुरण करता है। अत्यधिक शक्तिशाली उद्दीपना से पेशी का प्रचण्ड संकुचन होता है। अनु क्रिया की मात्रा द्वारा पारेषित तंत्रिका-आवेग का माप होता है। तंत्रिका-नियंत्रण की समस्या एक धातवीय तन्तु द्वारा विद्युत्-प्रेरणा का संवाहन और तंत्रिका द्वारा उत्तेजक आवेग का संवाहन, दोनों में अत्यधिक समानता है / धातु में संवाही शक्ति स्थिर होती है और विद्युत्-आवेग की तीव्रता विद्युत्-शक्ति की प्रदत्त तीव्रता पर निर्भर है। यदि तंत्रिका की संवाहन-शक्ति स्थिर होती तो तंत्रिका-आवेग की तीव्रता और उसके परिणाम में संवेदना पूर्णरूप से आघात करने वाली उद्दीपना की तीव्रता
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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