________________ अध्याय 25 सूर्य और उसका पर्ण-रथ प्राणी में उसके विभिन्न अंगों के बीच द्रुत संचार-साधन प्रायः जीवन और मरण का प्रश्न होता है। कारण, इसे जब दृष्टि या ध्वनि द्वारा अनिष्टकर भय का आभास होता है, संचलन-अंग को तंत्रिका द्वारा एक अविलम्ब संदेश भेजा जाता है। संचलन-अंग तत्काल ही मुक्ति के लिए सक्रिय हो जाता है। उद्दीपना की क्रिया द्वारा जीव की अभिवृत्ति में गूढ़ रूपान्तरण होते हैं। यदि वह उसके लिए लाभकारी है, वह उसकी ओर, तथा यदि हानिकर है तो उससे विपरीत दिशा में मुड़ता है। वनस्पति में भी मन्द और तीव्र उद्दीपना-क्रिया द्वारा दो विपरीत अभिक्रियाएँ होती हैं। तीव्र उद्दीपना से वनस्पति के जीवन को भय रहता है। मैं आने वाले एक अध्याय में यह वर्णन करूँगा कि किस प्रकार लाजवन्ती अपनी विशिष्ट गतियों द्वारा तीव्र उत्तेजना के उद्गम से बचती है। अब मैं वनस्पति की उस अभिवृत्ति का वर्णन करूँगा जिसे वह अपने लिए लाभकारी उद्दीपनाओं के अवशोषण के लिए धारण करती है। यह पहले ही कहा जा चका है कि वनस्पति द्वारा कार्बनिक एसिड के परिसाचन के लिए प्रकाश अनिवार्य है। जब इसके पर्णों का जारी तल आपाती किरणों के ठीक सीध में होता है, तब प्रकाश का अधिकतम अवशोषण होता है। इस लम्ब-समायोजन की परिभाषा है, पणं की पार-सूर्यावर्ती अभिवृत्ति (Dia-heliotropic attitude) / मेरे उद्यान में उत्पन्न कतिपय पौधों के चित्र (चित्र 117) प्रकाश की इसी खोज को प्रदर्शित करते हैं। मध्य पुष्प दीवार के पास उगा हुआ एक सूर्यमुखी है। इस पौधे पर पश्चिम से प्रकाश पड़ता है / 1 और 3 नम्बर के पर्ण ऐंठ गये हैं-- दाहिने या बायें--इस प्रकार कि इसके पर्ण-फलक के ऊपरी तल आपाती प्रकाश के लम्ब कोण पर हैं। दाहिनी ओर के चित्र में एक भिन्न प्रजाति के सूर्यमखी का, जो खुले में उत्पन्न हुआ था, मोड़ और समायोजन दिखाया गया है। प्रातः यह पूर्व की ओर मुड़ गया और इसके सब पर्णो में प्रकाश की ओर मुड़ने के लिए समुचित गति और मरोड़ (Torsion) हुई / अपराह्न में पौधा पश्चिम की ओर मुड़ गया / पहले वाले सब समायोजन और मरोड़ पूर्ण रूप से उलट गये। पौधे में एक के बाद दूसरे