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________________ 160 वनस्पतियों के स्वलेख संदृढ़ झिल्ली किसी समय पौधों में उत्तेजना के संवाहन के लिए प्ररसीय सातत्य अनिवार्य माना जाता था। किन्तु प्राणी में तंत्रिका-संगम केन्द्र के आरपार, जहाँ तंत्रिका-कोशिका से तंत्रिका-कोशिका संयुक्त होती है, कोई प्ररसीय सातत्य नहीं मिलता / इस पृथक् करने वाली झिल्ली को अन्तर्ग्रथन (Synapse) कहते हैं। यह अन्तर्ग्रथन एक कपाट का कार्य करता है और इस प्रकार तंत्रिका के आवेग को विपरीत दिशा के बजाय सही दिशा में जाने में सहायता देता है। तंत्रिका-आवेग के कतिपय दूसरे लक्षण अन्तर्ग्रथन की कपाट जैसी क्रिया से ही पैदा होते हैं। पौधे के तंत्रिका-ऊतक के एक विस्तृत परीक्षण द्वारा देखा गया कि इसमें लम्बी नलियों की तरह कोशिकाएँ होती हैं जिनकी आड़ी प्राचीरें संदृढ़ झिल्लियों का कार्य करती हैं। सुगमीकरण उद्दीपना की बारंबारता द्वारा कपाट के प्रायः खुलते रहने के कारण इसकी क्रिया स्पष्ट ही सुगम हो जायगी। एक जंग खाये हुए कब्जे को काम में लाने के लिए, ऐसे कब्जे की अपेक्षा जिसे बारबार काम में लाने से उसका सुगमीकरण हो गया हो, अधिक बलशाली धक्के की आवश्यकता होगी / तंत्रिका-ऊतक के पारेषण में भी समान परिणाम मिलता है, इसमें भी आवेग को गति द्वारा अवरोध घटता है, जिससे दूसरी बार उद्दीपना देने पर अभिक्रिया का सुगमीकरण होता है।' इस लाक्षणिक अभिक्रिया को "Bahnung" या बारंबार गमनागमन द्वारा मार्ग का खुलना कहते हैं / ' वनस्पति-तंत्रिका के लक्षण प्राणी के ऊतकों के समान ही हैं। यद्यपि सर्वप्रथम आवेग दोनों दिशाओं में चलता है, एक अधिमान्य दिशा ऐसी होती है जिसमें संदृढ़ झिल्लियों की कपाट-क्रिया के कारण इसका गमनागमन अधिक सुगम और गति द्रुततर होती है। अतः अभिकेन्द्र (Centripetal) से अधिक सुगमता केन्द्री (Centrifugal) पारेषण में होती है। पुनश्च, सुगमीकरण पहले वाली उद्दीपना द्वारा होता है / अतः एक विशिष्ट घटना में प्रादर्श की संवाहक शक्ति इतनी निम्न थी कि पीनाधार से 15 मि० मी० 1. Starling, Principles of Human physialogy (1920), P. 305.
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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