________________ तंत्रिका का स्थान-निर्धारण 187 लाजवन्ती के तने में ही दो विपरीत मुख्य वाही-पूल (Vascular Bund les) होते हैं। इनमें से प्रत्येक में तंत्रिकाओं के दोहरे तन्तु होते हैं / ये पर्णों को पार्वतः शाखाएँ देते हैं। इस प्रकार ये तने और पर्णों के मध्य संवाहनसातत्य बनाये रहते हैं / तने की उद्दीपना द्वारा निर्धारित आवेग इस प्रकार बाहर की ओर पर्णों तक भेजा जा सकता है। दूसरी ओर, पर्यों में उत्पन्न आवेग अन्दर तने तक जाता है और उनका पर्णों तक ऊपर-नीचे संवाहन होता है, जिसके कारण ये पर्ण गिर भी सकते हैं / यह भी देखा जायगा कि संवाहक अधोवाही के दोनों मुख्य तन्तु अभिसृत होकर तने के शिखर पर मिल जाते हैं (चित्र 113) / इससे स्पष्ट हो जाता है कि किस प्रकार मध्यम उद्दीपना यदि तने के एक पार्श्व में दी जाय, आरोही आवेग ऊपर पार कर विपरीत पार्श्व में चित्र ११३--तने और पर्ण के बीच उतरने वाला आवेग हो जाता है। संवाहन सातत्य / दोनों पावों में पर्णो सहित तने का लम्बा अनुभाग ‘वियक्त (Isolated) वनस्पति दोनों अपर चढ़ते हुए पूल F F' पों को पार्वतः शाखाएं देते हैं और . तंत्रिका शिखर पर मिलते हैं। द्विग्म फ्लोएम यह दिखाया गया है कि लाज. बंगनी अभिरंजित पृष्ठभूमि पर वन्ती के वाहिनी-बंडल में अधोवाही पृथक् दिखता है / पर्णों का स्थूला- वलयक ( Phloem Strand) उत्तेजनाधार गहरा होता है। संवाही तंत्रिका है। लाजवन्ती से इसे . बिना टुकड़े-टुकड़े किये निकालना असम्भव है; किन्तु मैं एक पर्णाग (Fern) के पर्णवृन्त से तंत्रिका को अलग करने में सफल हुआ। पर्णवृन्त का कड़ा छिलका सावधानी से तोड़ दिया गया, और इसको पृथक करने पर वाही-नाड़ीतन्तु अलग हो गये। वे कोमल F .