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________________ अध्याय 1 मक जीवन वनस्पति में जीवन की महती सम्भावनाएं कभी-कभी गोपनीय और प्रायः अगोचर रहती हैं। विशाल वट-वक्ष सरसों से भी छोटे पिण्ड में निवास करता है। बीज के छिलके से घिरा सुषुप्त जीवन उपयुक्त ऋतु और अनुकूल दशा में जागृत होने के लिए बहुत समय तक पड़ा रहता है। सुषुप्ति की दशा में जीवन की प्रतिरोध-शक्ति विलक्षण होती है। बीज को ऐसे शीत में रखे जाने पर भी, जिसमें वायु द्रवीभूत और पारा घनीभूत हो जाता है, देखा गया है कि बीज के छिलके के रक्षाकवच के भीतर सभी बाहरी आपत्तियों का सामना करते हुए जीवन अक्षुण्ण बना रहता है। आंधी और बवंडर जीवित बीजों को बिखेर देते हैं। नारियल समुद्र की तरंगों पर बहता रहता है जब तक किसी निर्जन द्वीप पर सुरक्षित पहुँच नहीं जाता। उचित ऋतु में परिवर्तनों का आश्चर्यजनक क्रम आरम्भ होता है, सुप्त जीवन जागृत होता है। बीज का छिलका फटकर अलग हो जाता है और वृद्धि आरम्भ हो जाती है। लगता है मानों बीजांकुर में मानवोचित क्षमताएँ हों। इसे उलटकर रख दीजिये, फिर भी मुख्य जड़ बिना किसी असावधानी के नीचे मुड़कर पानी के लिए पृथ्वी में प्रवेश करती है और तना वायु और प्रकाश के लिए ऊपर उठता है। पत्थरों और अन्य बाधाओं को बचाती हुई जड़ धरती के अन्दर प्रविष्ट होती जाती है / तना प्रकाश की ओर मुड़ता है और तन्तु अवलम्बन से लिपटते हैं। ये दृश्य-व्यापार यथेष्ट आश्चर्यजनक लगते हैं। किंतु वनस्पति के शान्त बाह्यरूप के भीतर अन्य शक्तिपूर्ण और सतत चलती रहने वाली क्रियाएँ हैं, जो अब तक निरीक्षा से बची रही हैं। जब तक हम इस अदृश्य के क्षेत्र में प्रवेश नहीं करते, उसके जीवन के रहस्य और उसकी विविध अभिव्यक्तियों का समाधान नहीं हो सकेगा।
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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