________________ अध्याय 21 प्राणी और वनस्पति पर ऐलकालायड और नाग-विष की क्रिया जैसा.पहले एक अध्याय में स्पष्ट किया जा चुका है, विद्युत्-प्रणाली द्वारा 'मैं यह प्रमाणित करने में सफल हुआ कि प्रेरक ऊतक पौधे की पूरी लम्बाई में होता है और रस-स्राव एक ऐसे यंत्र द्वारा होता है जो प्राणी के रक्तप्रवाह यंत्र के समान होता है। जैसा पहले ही स्पष्ट कर दिया गया है, पौधे में इस ऊतक का लयबद्ध स्पन्दन केवल संवादी स्पन्दनों द्वारा ही देखा गया। रस-प्रवाह की जो वाहिका है, उसे धमनी मान लिया जाय, जिसकी धड़कन क्रिया ही नाड़ी-स्पन्दन के सदृश है। क्या यह किसी प्रकार सम्भव है कि यथार्थ स्पन्दन का यांत्रिक अभिलेख लिया जा सके। यदि हम ऐसा करने में सफल हो जायें तो पौधे की स्पन्दन-क्रिया दो पूर्ण स्वतंत्र प्रणाली, विद्युत् और यांत्रिक, द्वारा प्रदर्शित की जा सकती थी। इससे भी अधिक कठोर परीक्षाएं हैं जो रस और रक्तप्रवाह की यंत्र रचनाओं की मूल समानता को प्रशित कर सकती हैं। विभिन्न ऐलकालायडों द्वारा प्राणी के स्पन्दन में विशेष प्रकार की अभिक्रियाएं होती हैं। क्या ये पौधे के स्पन्दन को भी इसी प्रकार प्रभावित करती हैं ? प्राणी के स्पन्दन का अभिलेख प्राणी के स्पन्दनों का प्रत्यक्षअभिलेख हृत्स्पन्दन-लेखी (Cardiograph) द्वारा हो सकताहै और परोक्ष अभिलेख नाड़ी-लेखी (Sphygmograph) द्वारा हो सकता है। हृत्स्पन्दन-लेखी एक विशेष प्रकार का प्रवर्धन उतोलक है जिसकी छोटी बाँह स्पन्दित हृदय से युक्त रहती है और लम्बी बांह एक गतिमान् धूमित कांच-पट्टपर स्पन्दनों का अभिलेख लेती जाती है। उद्दीपक भेषज द्वारा उदञ्चन-क्रिया काफी बढ़ जाती है,