________________ ताड़ वृक्ष का दोहन 151 किन्तु ताड़ के स्कंध में छिद्र बनाने पर रस का स्राव नहीं होता। मैंने एक वृक्ष को काटा किन्तु स्कंध के कटे हुए छोरों से एक बूंद भी रस नहीं निकला। स्कंध के आन्तरिक ऊतको के टुकड़े लेकर देखे गये, वे पूर्ण शुष्क थे और अत्यन्त कठिनाई से बहुत निचोड़ने पर थोड़ी-सी मात्रा में रस निकला। इस संपरीक्षण द्वारा यह प्रमाणित हुआ कि आहत स्थान से स्त्राव होने का कारण जड़ का दाब नहीं है। इस विषय में यह स्मरण रखना चाहिये कि खजूर शुष्क भूमि में और मरुभूमि में भी उत्पन्न होता है, इसलिए आवश्यकता उसे अल्प और अनिश्चित जल-प्राप्ति का पूरा-पूरा उपयोग करने के लिए बाध्य करती है। वृक्ष यथेष्ट दूरी तक एक सहस्र से अधिक जड़ें फैलाता है। प्रत्येक जड़ अंगुलियों के समान स्थूल होती है। मैंने इन जड़ों का प्रायः 10 फुट तक अनुगमन किया किन्तु अन्त नहीं मिला। इस प्रकार वृक्ष के स्कंध को बृहत् और विस्तृत जड़-प्रणाली द्वारा धीरे-धीरे जल प्राप्त होता है और वृक्ष के स्कंध में रस दृढ़तापूर्वक रुका रहता है / जैसा पहले कहा जा चुका है, ताड़ के स्कंध में छेद करने से रस की एक बूंद भी नहीं निकलती। फिर किस प्रकार इसे अपनी सचित राशि देने के लिए बाध्य किया जाता है ? यह तथ्य कि स्कंध के ऊपरी भाग में उदग्र टुकड़े काटने पर भी स्राव नहीं होता, ताड़ के आहत तल की स्वाभाविक निष्क्रियता को प्रकट करता है। प्रायः एक सप्ताह तक लगातार छीलने पर ही रस का स्राव प्रारम्भ होता है। इन तथ्यों का स्पष्टीकरण क्या है ? पहले ही एक अध्याय में दिखाया गया है कि जीवित ऊतक को उचित उद्दीपना द्वारा निष्क्रिय से बहुमुख सक्रिय बनाया जा सकता है / स्वभावतः एक अति निष्क्रिय ऊतक को सक्रिय बनाने के लिए अत्यधिक तीव्र उद्दीपना या पुनरावर्ती उद्दीपना की आवश्यकता होगी। इनके सम्मिलित प्रभाव से ही वह प्रभावित होगा। ताड़ को स्राव के लिए बाध्य करने के लिए तीव्र आघात-उद्दीपना का प्रत्यावर्तन कई दिन तक लगातार करना पड़ता है। दोहन-क्रिया ग्रन्थ-ताड़ में, जिसमें रस फुली हुई शूकी या छद-शूकी से निकलता है, बाध्य करने की विधि कुछ भिन्न होती है। जब छद-शूकी (Spadix) का अग्न भाग काटा जाता है, स्राव नही होता। वह तभी होता है जब पुष्पक्रम को कई दिन तक विशेष विधि से साधित किया जाय / इस कार्य के लिए भिन्न-भिन्न देशों में दो प्रकार की विभिन्न विधियाँ काम में लायी गयी हैं, जिनके लिए उपयुक्त शब्द 'टक्कर मारना' और 'दोहन' करना ही हो सकते हैं। यह बछड़े की उस क्रिया के सदृश ही है जिससे वह गाय को दूध देने के लिए बाध्य करता है।