________________ अध्याय 18 प्रणोदक ऊतक पिछले अध्याय में वर्णित संपरीक्षणों द्वारा प्रमाणित होता है कि वनस्पति के अन्तर में कहीं कोई सक्रिय ऊतक है जिसका स्पन्दन रस-उत्कर्ष को प्रभावित करता है, ठीक उसी प्रकार जैसे प्राणी में हृत्स्पन्दन रक्त-प्रवाह को बनाये रहता है। इसलिए पौधे में अवश्य आद्य हृदय जैसी कोई चीज होगी; किन्तु उतनी केन्द्रित और विभेदित नहीं जितनी कि उच्चतर प्राणी में / निम्न प्राणियों में और उच्चतर प्राणियों चित्र ५४--स्पन्दित स्तर का स्थान-निर्धारण करने वाली वैद्भुत शलाका बिन्दु 'A' पर तने में घुसती है, द्वितीय वैद्युत स्पर्श एक दूर स्थित पर्ण से होता है। दाहिनी ओर का चित्र पौधे के ऊतकों में कम से शलाका को ले जाने का . सूक्ष्ममापी पेंच सहित बढ़ा हुआ दीर्घ रूप है। के भ्रूण में हृदय एक लम्बा अंग है / उसका पोषण क्रम-संकोची संकुचन द्वारा संचालित होता है। मैंने पाया कि इसी प्रकार पौधे में भी क्रम-संकोची क्रिया द्वारा रसउत्कर्ष होता है क्योंकि पौधे की प्रेरक यंत्र-रचना इतनी विभेदित नहीं है जितनी