________________ कुमुदिनी का रात्रि-जागरण 117 हमारा दैनिक कार्य समाप्त हुआ। जीवन का विस्तार केवल एक घंटे का है। अब देखो सोने के तारों से भरे खेत, खिलते हुए झिंगा फूल के खेत।। मैं अब प्रत्येक संध्या को गंगा के किनारे सिजबेरिया के अपने संपरीक्षण उद्यान में एक दिव्य कायाकल्प देखता हूँ। बागबान ने एक बड़े भूभाग में झिंगा पुष्प लगा रखा है / दिन को जब ये पुष्प बन्द रहते हैं तब ये दृष्टिगोचर नहीं होते / इनके बाह्य पुष्पपर्ण हलके हरे होते हैं / जब अपराह्न में मैं घूमने के लिए जाता हूँ तब मैं अपने पुराने परिचित उद्यान को पहचान नहीं पाता। कुछ ही देर में वह पुष्प समूह से भर जाता है, पुष्प जो दिव्य सुनहरे होते हैं / वे रात भर खिले रहते हैं, फिर - प्रातः बन्द हो जाते हैं / स्वर्ण वस्त्र वाला परी-क्षेत्र अकस्मात् ही लुप्त हो जाता है। अब हम कुमुद के खिलने और बन्द होने की घटना को समझने का प्रयत्न करेंगे। पौधे को पर्यावरण से अनेक उद्दीपनाएँ मिलती हैं और इनमें से प्रकाश भी एक है। इसका एक परिचित उदाहरण है सूर्यमुखी का सूर्य की ओर मुड़ना / यह देखा गया है कि धेि के अंगों में गति के लाने में प्रभावी उज्ज्वल प्रकाश की सब किरणों में नीली और बैंगनी किरणें सबसे अधिक समर्थ हैं। चन्द्रमा का प्रकाश न केवल मन्द है बल्कि इन प्रभावी किरणों से रहित भी है, इसलिए चन्द्रमा का प्रकाश पुष्प-पों की गति में सहायक नहीं हो सकता। केवल सूर्य का प्रकाश ही प्रभावी है, किन्तु कुमुद के खिलने और बन्द होने का सूर्य के उदय और अस्त से कोई सम्बन्ध नहीं है / खिलना सूर्य के अस्त होने के कारण नहीं होता, क्योंकि पूर्वाह्न में पुष्प खिला रहता है / न यह उदय होते सूर्य से होता है, क्योंकि उसके उदय होने के पहले ही वह खिला रहता है। इसलिए पुष्प की दैनिक गति प्रकाश और अन्धकार की यथाक्रम क्रिया पर निर्भर नहीं है। समस्या की जटिलता .. पौधा केवल एक ही उददीपना द्वारा प्रभावित नहीं होता। पौधे की गति की घटनाएं, जैसा पहले कहा जा चुका है, उन्हें प्रेरित करने में सहायक अनेक कारकों के कारण अस्पष्ट रहीं। यदि हम अनेक कारकों में से केवल दो के विषय में विचार करें तो यह ज्यादा ठीक से समझ में आयेगा। वे दो कारक हैं गुरुत्वाकर्षण और प्रकाश की उद्दीपना। कुछ अंग भू-अभिवर्तनीय उद्दीपना के प्रति बहुत ही संवेदनशील होते हैं और कुछ मन्द / तीव्रतर अनुक्रिया 'G' द्वारा और मन्द 'g' द्वारा