________________ अध्याय 15 प्रकति में वनस्पति की गति वनस्पति, पर्यावरण की विभिन्न शक्तियों से अपनी सतत समायोजना उपयुक्त गतियों द्वारा करती रहती है। ऐसी गतियाँ अत्यधिक मन्द होती है और अन्तिम प्रतिफल कुछ समय के पश्चात् ही ज्ञात होता है। जब हम उद्यान में घूमने जाते हैं, हम पौधों के विभिन्न अंगों के सतत परिवर्तन को देखकर आश्चर्यान्वित हो जाते हैं / यह एक तन्तु (Tendril) है जो पास की एक झाड़ी की टहनी को छू रहा है (चित्र 60) / तन्तु को स्पर्श का प्रतिबोधन हो चुका है और वह इस आधार को पकड़ कर उसमें लिपट गया है। इस प्रकार उसने पौधे को ऊपर चढ़ने और अधिक से अधिक प्रकाश पाने में सहायता दी है। वहा देखिये घनी छाया में एक गमले में एक पौधा है,उसने अपनी पत्तियों को इस प्रकार झुका दिया है और ऐंठ गया है कि उनके ऊपरी तल, पर्दे के छेद में से आते हुए प्रकाश द्वारा पूर्ण प्रकाशित हैं (चित्र 61) / , एक और दूसरे स्थान में पौधा प्रकाश से बचने के लिए दूसरी ओर घूम गया है। यहाँ एक पौधे में अकस्मात् उलट-फेर हो गया है और उसका क्षतिज स्कंध अब ऊपर की तरफ मुड़ रहा है जिससे फिर से सीधा हो जाय। चित्र ६०-तन्तु का मरोड़। पर्यावरण की उद्दीपना द्वारा प्रेरित ये गतियाँ अतिशय भिन्न और जटिल हैं। कार्यशील शक्तियाँ अनेक हैं-परिवर्तित तापमान का प्रभाव,स्पर्श,गुरुत्वाकर्षण, दृश्य और अदृश्य प्रकाश की उद्दीपनाएँ। इसके अतिरिक्त समान उद्दीपना का एक बार कुछ प्रभाव होता है और दूसरी बार ठीक उसके विपरीत। इस प्रकार इन अत्यधिक विपरीत