________________ सहदेई गुण-मह्मवला तु मधुरा धातुवृद्धिकारी मता। बल्या वृष्यादिदोषघ्नी ज्वरहृद्रोगदानुत् // वाताशः शोफविषमज्वरान्मेहगणं तथा / बहुमूत्रं नाशयतीत्येवमाचार्य भाषितम् ॥–शा० नि० सहदेई–मधुर, धातुवर्द्धक, बलकारक, वीर्यवर्द्धक, त्रिदोषनाशक तथा ज्वर, हृद्रोग, वातार्श, शोथ, विषमज्वर, बीस प्रकार के प्रमेह और बहुमूत्र नाशक है / विशेष उपयोग (1) विषम ज्वर-रविवार को प्रातः काल स्नानकर पूर्वाभिमुख होकर अपनी छाया पड़ने देने बिना ही युक्ति पूर्वक जमीन खोदकर सहदेई की जड़ निकाल कर और उसे काले डोरे में बाँधकर हाथ में बाँधने से नष्ट होता है। (2) काँच निकलने पर सहदेई का रस डालकर दबाना चाहिए। .. (3) स्त्री का गुप्तांग निकलने पर-सहदेई का रस छोड़कर दबाना चाहिए। अथवा हाथ में रस मसलकर दबाना चाहिए। (4) मुख-रोग-सहदेई के जड़ के काथ का कुल्ला करने से नष्ट होता है। . (5) पसीना लाने के लिए-सहदेई का गरम-गरम काढ़ा पीना चाहिए।