________________ वनस्पति-विज्ञान 54 और सिंहल आदि देशों में भी होती है / पान का व्यवहार भारत में बहुत अधिक है। आजकल तो पान से ही आदर-सत्कार किया जाता है / इसका व्यवहार पूजन, खाने और औषधि में होता है / यह बँगला, मगही, साँची, कपूरी, महोबी, मद्रासी, कलकतिया, बनारसी और गयावाली आदि अनेक नामों से सम्बोधित किया जाता है। गया का मगही पान सबसे अच्छा समझा जाता है। इसकी नसें बहुत पतली और मुलायम होती हैं / यह मुँह में रखते ही गल जाता है / गया के पान से बढ़कर अन्य दूसरा पान नहीं होता / कच्चा पान हरा और पक्का पान सफेद होता है / आजकल जिस प्रकार पान खाया जाता है, उससे स्वास्थ्य नाश के अतिरिक्त और कोई लाभ नहीं होता। हाँ, थोड़ा खाने से लाभ अवश्य होता है। गुण-ताम्बूलं विशदं रुच्यं तीक्ष्णोष्णं तुवरं मतम् / वश्यं तिक्तं कटु क्षारं रक्तपित्तकरं लघु // बल्यं श्लेष्मास्यदौर्गन्ध्यमलवातश्रमापहम् / —भा० प्र० पान-विशद, रुचिकारक, तीक्ष्ण, उष्ण, कषैला, सारक, वशीकरण, चरपरा, क्षार, रक्तपित्तकारक, हलका, बलकारक तथा कफ, मुख की दुर्गन्धि, मल, वात और श्रम नाशक है / . विशेष उपयोग (1) सर्पदंश पर-पान की जड़, पान के बीड़ा में रखकर खाना चाहिए। इससे क्मन होकर विष नष्ट हो जायगा। दो-तीन बार खाने से वमन अवश्य होने लगता है।