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________________ वनस्पति-विज्ञान 48 उठाना पड़ता है। पर औषधियों के इन गुणों से क्या लाभ ? क्योंकि अब तो हमारा विश्वास उन पर नहीं है। हमें तो अंब रंगदार पैकिंग चाहिए, लाल-पीली शीशियाँ चाहिएँ और केवल कार्क खोलकर मुँह में शीशी लगा लेनी की सुविधा चाहिए। आज इसी सुविधा ने हमें एकदम पंगु और अपाहिज बना दिया है, और मूर्खतावश हम रत्न को खोकर काँच को ग्रहण कर रहे हैं तथा जान-बूझकर काल के गाल में चले जा रहे हैं। हमारा शरीर जिन पंच महाभूतों से निर्मित हुआ है, उन्हीं पंच महाभूतों से उद्भिज-वनस्पतियों एवं खनिज द्रव्यों का भी निर्माण हुआ है। तीनों की स्थूल और मौलिक धातुओं में समा. नता है। अतः जब मानव शरीर को रसादि धातुएँ जरा-व्याधिचिन्ता आदि कारणों से विकृत, कुपित, क्षीण एवं विनष्ट करने लगती हैं, उस समय चिकित्सक लोग वनस्पतियों और खनिज पदार्थों को शुद्ध करके रासायनिक प्रयोग करते हैं / जिससे उनका विकार और ह्रास मिट जाता है, और शरीर शुद्ध एवं स्वस्थ होकर मनुष्य दीर्घजीवन प्राप्त करता है / खनिज पदार्थों की शुद्धि और औषधि-निर्माण में बहुत कठिनाई श्रम और व्यय पड़ता है / उसका निर्माण विद्वान और क्रियाशील चिकित्सक के लिए ही हो सकता है / बहुत-सी वनस्पतियाँ भी रासायनिक योग से अनेक व्याधियों पर रसादि की तरह ही लाभ पहुँचाती हैं। वास्तव में यदि सच पूछा जाय, तो रोग विशेष में रसादिक
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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