________________ वनस्पति-विज्ञान 44 रसचिकित्सक को दोष, रोग, पुरुषत्व, देश और काल के परीक्षा की आवश्यकता नहीं है। . वास्तव में यह उक्ति अक्षरशः सत्य है / मकरध्वज, हिरण्यगर्भ, स्वर्ण और रत्नादिक तथा अन्य रसादिक औषधियाँ तत्काल अपना फल दिखाती हैं। वनस्पतियों में भी ये गुण विद्यमान हैं ; किन्तु . उनकी मात्रा और प्रकार देखकर एवं उनके विषय में अपनी अज्ञानता का स्मरण करके तबीयत सिहर जाती है। रसादिक औषधियों का फल देखकर बहुतेरे डाक्टर भी, याने अमेरिका और जर्मन तक मकरध्वज का प्रचार हो गया है तथा अब तो वहाँ से बनकर भारत में भी बिकने आने लगा है ; बल्कि यों कहना चाहिए कि प्रचुर मात्रा में उसका प्रचार भी हो गया है / रस औषधियाँ अन्य औषधियों की अपेक्षा शीघ्र गुणकारी होती हैं / आयुवेदज्ञ महर्षियों ने साध्य रोगों के लिए सब प्रकार की काष्ठादि औषधियों का विधान किया है; किन्तु असाध्य रोगों के लिए किसी भी औषध का उल्लेख नहीं किया है, बल्कि रस विज्ञानाचार्यों ने साध्य-असाध्य सभी रोगों के लिए रस चिकित्सा का विधान किया है।