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________________ रसायन और वनस्पति मात्रा स्वल्प होने और जारित द्रव्य होने से किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता, और ये सभी अवस्थाओं में व्यवहार की जा सकती हैं। रोगी को असह्य पीड़ा या संज्ञाहीन अवस्था में रसादिक औषधियाँ प्रवृष्ट कर देने से तत्काल अलौकिक लाभ पहुंचता है। साथ ही ये कटु, कषाय, तिक्त आदि भी नहीं होते। इससे रोगी को इनके सेवन में अरुचि नहीं होती और लाभ भी यथेष्ठ होता है। उग्रवीर्य होने के कारण वनस्पतियों से ये अधिक शक्तिशालिनी होती हैं / सन्निपात-ज्वर में जब रोगी की नाड़ी तक का पता नहीं चलता और वह मरणासन्न हो जाता है, उस समय किसी भी काथ, आसव, अरिष्ट और अवलेह से काम नहीं चलता। उस समय तो मकरध्वज और कस्तूरी भैरव को स्मरण करना ही पड़ेगा। यह सभी लोग जानते हैं कि यक्ष्मा आदि रोगों में जिस समय शरीरस्थ धातुओं का क्षय प्रारम्भ हो जाता है, उस समय वनस्पतियों की अपेक्षा रसादिक औषधियाँ अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हुई हैं; क्योंकि रसादि शमनकारक होते हैं; वे शोधन का कार्य न करके दोषों को साम्यावस्था पर लाने का प्रयत्न करते हैं / रसौधियाँ रसायन होने से क्षय के निवारण में सर्वथा उपयोगी सिद्ध हुई हैं। किन्तु उस समय भी वानस्पतिक आहार शरीर के पोषण में विशेष सहायता करता है / कहा है न दोषाणां न रोगाणां न पुंसाञ्च परीक्षणम् / न देशस्य न कालस्य कार्य रसचिकित्सके //
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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