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________________ 42 वनस्पति-विज्ञान णाम यह हुआ कि आज सृष्टि में रासायनिक औषधियों का प्रचार अधिकाधिक बढ़ता जा रहा है। . ___ धातुओं और रसों को शरीरोपयोगी बनाने के पूर्व उनके दोषों को दूर करने के लिए उनका शोधन आवश्यक है। वे दोष दो प्रकार के होते हैं / १-स्वाभाविक और २–संसर्गज / दोनों दोषों से शरीर को हानि पहुँचती हैं। इन दोषों को दूर करने के लिए उनका शोधन और मारण किया जाता है। इनसे अनिष्ट की आशंका नहीं रहती, और संस्कार होने से उनकी शक्ति अधिक बढ़ जाती है / किन्तु कुछ पदार्थ ऐसे हैं, जो संशोधन करने पर भी शरीर का अनिष्ट करते हैं, इसीलिए जारण संस्कार के पूर्व उनका उपयोग नहीं किया जाता। इससे धातुएँ भस्म होकर जल में तैरने योग्य हो जाती हैं, और भिन्न-भिन्न गुणों को प्रकट करती हैं। इन दोनों संस्कारों के हो जाने पर धातुएँ उत्तम प्रकार से जीर्ण होकर शारीरिक कार्य करने योग्य हो जाती हैं; परन्तु इतने पर भी उनमें शरीर को हानि पहुँचानेवाला दोष विद्यमान रहता है। इसके दूर करने लिए अमृतीकरण नामक एक तृतीय संस्कार भी होता है। प्रायः देखा जाता है कि आजकल शोधित, जारित और अमृ. तीकरण की हुई धातुएँ औषध-रूप से देने में रोगी के शरीर में पहुँचते ही काष्ठादिक औषधियों की अपेक्षा विशेष कार्य करती हैं। इसकी मात्रा भी अति स्वल्प और कार्य उप्रवीर्य-सा होता है /
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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