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________________ वनस्पति-विज्ञान . 40 वनौषिधियाँ कड़वी, चरपरी और अनेक गंधवाली होने के कारण तथा अधिक मात्रा में सेवन करने के कारण; अरुचि, घृणा आदि विकार उत्पन्न होते हैं, और कुछ लोगों को तो घृणा से क्षुधा भी मन्द हो जाती है / इसलिए रोगी दुर्बल एवं क्षीण काय हो जाता है / अधिकांश वनस्पतियाँ शोधित होकर भी रोगी के शरीर में पहुँचकर वमन, विरेचन आदिक उपद्रव उत्पन्न कर देती हैं / अतीसार, संग्रहणी और राजयक्ष्मादिक रोगों में काष्ठ औषधियों का उपयोग किए बिना काम भी नहीं चलता तथा प्रयोग करते समय अत्यन्त सावधानी की आवश्यकता भी है / ज्वरनाशक औषधियाँ अनुलोमक होती हैं और अतीसारन ग्राही होती हैं। अतः दोनों ही परस्पर विरोधी हैं / शोथ में अतीसार और अतीसार में शोथ होना अरिष्टकारक कहा गया है। कारण शोथ की सम्पूर्ण औषधियाँ विरेचक हैं इसलिए उनके प्रयोग से शोथ तो कम हो जायगा; किन्तु अतीसार बढ़ जायगा / अतीसारघ्न औषधियों का सेवन करने पर अतीसार तो कम हो जायगा; किन्तु शोथ बढ़ जायगा / इस परिस्थिति में काष्ठादिक औषधियों के द्वारा चिकित्सा करने से अधिक समय और श्रम से काम लेना पड़ता है / किन्तु रसादिक औषधियाँ अति शीघ्र लाभकारी होती हैं / यह निर्विवाद सिद्ध है। जिस समय रोगी रोग के प्रबल आक्रमण से बेहोश और विकल हो जाता है, उस समय काष्ठादिक औषधियाँ अधिक मात्रा
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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