________________ वनस्पति-विज्ञान 38 दिया था। वह इसलिए कि इसका धार्मिक रूप समझ कर. लोग भूलेंगे नहीं / इस विषय में उन लोगों ने बड़ी दूरदर्शिता से काम लिया था। परन्तु हम लोग चिरकाल से दासत्व की शृंखला में आवद्ध रहने के कारण, अपनी सम्पूर्ण अच्छी वस्तुओं को भूल गए हैं तथा भूलते जा रहे हैं। हमें अपने देश की अच्छी वस्तुएँ नीरस और गुणहीन मालूम होती हैं। विदेशों की निर्गुण तथा बुरी वस्तुएँ भी सरस और गुणवती प्रतीत होती हैं। यह हमारे देश का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है। आयुर्वेद शास्त्र की महिमा अपार है / इसके द्वारा संसार का बड़ा उपकार होता है। हमारे आर्य महर्षियों ने आयुर्वेद शास्त्र पर जो ग्रन्थ निर्मित किए हैं, वह आज किसी-न-किसी रूप में संसार भर के चिकित्सकों के आदर के पात्र हैं। आयुर्वेद में औषध और शल्य-दोनों का विषद वर्णन है। प्रत्येक बातें बड़ी सरलता से समझाई गई हैं। पर समय की अपूर्व गति है / आज उसके पतन के दिन दृष्टिगोचर हो रहे हैं। न तो इस चिकित्सा को राज्य की ओर से ही उन्नति करने का सहारा मिलता है और न जनता ही उसपर प्रयत्नशील दीख पड़ती है। कुछ कर्त्तव्यपारायण चिकित्सक अवश्य ही इस ओर आकृष्ट हुए हैं। हमारी औषधियों का सस्तापन और उनका गुण इस बात के लिए प्रेरित करता है कि इसका उद्धार किया जाय / यही हम गरीबों के लिए अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकती है /