________________ 37 वनौषधियाँ उसके उस परमोपयोगी उपकार को तुच्छ समझने लगे हैं। तथा विदेशियों के साहचर्य से अपने उन विशाल नन्दन भवनजैसे स्वास्थ्य वर्द्धक स्थानों को छोड़कर एवं ह्नाददायक वायु को छोड़कर सुदूरवर्ती पाश्चात्य देशों में स्वास्थ्य सुधारने तथा शुद्ध वायु का सेवन करने एवं अपनी दिव्य वनौषधियों का परित्याग कर अपना भयंकर रोग उनके “सोडा वाई कार्व" से छुड़ाने जाते हैं। इससे बढ़कर लज्जा और दुःख का विषय और हो ही क्या सकता है / प्राचीन महर्षि धन्वन्तरि, आत्रेय, हारीत, अश्विनीकुमार, भेड़, पाराशर, अमिवेश, चरक, सुश्रुत और वाग्भट आदि ने भयंकर रोगनाशक और सर्व सुलभ जिन असंख्य वनस्पतियों के गुणावगुण का वर्णन किया है, उनपर हम विश्वास नहीं करते तथा कृत्रिम एवं अर्थ नाशकारी विदेशी औषधियों का हर्ष के साथ स्वागत कर मुँह बना-बनाकर पीते हैं / यही कारण है कि आजकल दिन-प्रति-दिन रोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है / * वनस्पतियों में अनेक बड़े-बड़े गुण हैं; परन्तु उनकी खोज करने वालों की बड़ी कमी है। प्राचीन ऋषियों ने जंगलों में रह कर अपने बुद्धि-कौशल से अनेक वनस्पतियों के गुणावगुण की खोज करके भावी सन्तान के हितार्थ सम्पूर्ण विवेचना की थी। जो वनस्पतियाँ उन्हें विशेष गुणकारी प्रतीत हुई, उनपर लोगों की सदैव भक्ति-भावना रखने के लिए उन्होंने उनका उपयोग देवपूजन के लिए कर दिया था, और उसका सम्बन्ध धर्म से लगा