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________________ वनौषधियाँ प्रकृति ने भारत की पवित्र बसुन्धरा पर संसार के उपकारार्थ अनन्त दिव्य वनौषधियाँ उत्पन्न कर दी हैं / यदि भारतवासी उनके दिव्य गुणों को जान जायँ तो निस्सन्देह वे अनेक जटिल रोगों के चंगुल से बच कर उत्तम स्वास्थ्य और सुख का अनुभव कर सकते हैं / हमारे पूर्व महर्षि लोग अनेक दिव्य औषधियों के गुणों का पूर्ण ज्ञान रखते थे और उनको कल्प तथा रसायन की विधि से सेवन कर दीर्घायु, बल और मेधा आदि को प्राप्त कर चिरकाल तक नवयौवन संयुक्त रहते थे। .. दिव्यौषधीनां बहवः प्रभेदा वृन्दारकाणामिव विस्फुरन्ति / ज्ञात्वेति सन्देहमपास्य धीरैः संभावनीया विवधः प्रभावाः // दिव्यौषधियों के अनेकानेक भेद हैं और वे तारकाओं की भाँति उदित हैं; ऐसी धारणा बनाकर और सन्देह को दूर करके विज्ञ नाना प्रकार के प्रभावों वाली दिव्यौषधियों का प्रयोग करे। ___ प्रकृति ने हम भारतीयों को स्वस्थ, सबल एवं दीर्घजीवी बनने के लिए उन अमूल्य वनस्पतियों की रचना की है तथा धनधान्य से भी इस प्रकार पूरित किया था कि हमें किसी देशवासी के समक्ष किसी भी वस्तु के लिए हाथ पसारने की आवश्यकता एकदम नहीं थी; किन्तु प्रकृति की परिवर्तनशीलता ने हमें इतनी अज्ञानता, निर्लज्जता और स्वार्थान्धता प्रदान कर दी है कि हम
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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