________________ आयुर्वेद को चिकित्सा पद्धतियाँ पड़ता है / इससे इस प्रकार के सिद्धान्तों और विद्याओं को हमारे देश में महत्व नहीं दिया जाता, और उन्हें पौरुषेय या पुरुषकृत माना जाता है; क्योंकि यह निर्धान्त नहीं हो सकतीं। ___ दूसरे समाधिस्थ दशा में ऋषियों ने त्रिकालदर्शी तथा सत्या. सत्य प्रेक्षक होकर जिन सत्य सिद्धान्तों की रचना की है और जिन विद्याओं का विकास किया है, वे निर्धान्त हैं; क्योंकि इनमें सिद्धान्त पहले बन जाते हैं, और उनका अनुभव मनुष्य के लिए छोड़ दिया गया है, और वे सिद्धान्त सर्वथा सत्य होते हैं / यरोप में निर्धान्त सिद्धान्त कोई हो ही नहीं सकता / हमारा आयुर्वेद आर्ष है / इसकी औषधियाँ घटाई-बढ़ाई जा सकती हैं। किन्तु चिकित्सा के सिद्धान्तों या अन्य सिद्धान्तों में कोई अन्तर नहीं आ सकता / इसके सत्य सिद्धान्तों में कोई परिवर्तन हो ही नहीं सकता / जिस आयुर्वेदीय चिकित्सा-द्वारा किसी समय समस्त मानव जाति आरोग्य और स्वस्थ शरीर से दोपजीवन प्राप्त कर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त करती थी; आज उसी के विषय में हमारे देशवासियों का अनुराग कितना कम हो गया है। इस विषय में अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है। जिस प्रकार स्वस्थ दशा में कोई भी देवी-देवता को पूजना या अर्चना नहीं चाहता, उसी प्रकार आयुर्वेदीय चिकित्सा को अपनाने में भी प्रायः अधिकांश मनुष्यों की ऐसी ही प्रवृत्ति देखी जाती है /