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________________ आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धतियाँ आयुर्वेद के प्रधानतः दो अंग है। १-धन्वन्तरि सम्प्रदाय और २-भरद्वाज सम्प्रदाय / धन्वन्तरि सन्प्रदाय उसे कहते हैं, जिससे शल्यतंत्र की शिक्षा मिलती है, और भरद्वाज सम्प्रदाय उसे कहते हैं, जिससे काय चिकित्सा का प्रादुर्भाव हुआ है। हमारी आर्य जाति के पास सबसे श्रेष्ठ और अत्यन्त प्राचीन रत्न आयुर्वेद शास्त्र है। जब संसार के अन्य देश अज्ञानान्धकार में पड़े हुए थे; रोगों की कठोर यातनाओं से एवं महामारियों के लोकक्षयकारी प्रभावों से पीड़ित थे, मिश्र आदि प्राचीन देशों के निवासी रोगों से निस्सहाय और निरुपाय होकर मृत्यु का आतिथ्य स्वीकार करने के लिए वाध्य हो रहे थे, उस समय भारतभूमि में आयुर्वेदशास्त्र अपनी उन्नति के शिखर पर था / तात्पर्य यह है कि हमारे देश में जितनी भी विद्याएँ मिलती हैं उनको ऋषियों ने समाधिस्थ होकर ही जाना था / साधारतः आजकल दो प्रकार की विद्याएँ मानी जाती हैं / एक तो वह है, जो सिद्धान्त परीक्षा से सिद्ध हो / दूसरी वह है, जो स्वयं सिद्ध है और अपरिवर्तनशील है / यूरोप की विद्याएँ सिद्धान्त की परीक्षा में परखी जाती हैं। किन्तु इस प्रकार के सिद्धान्तों और विद्याओं में एक त्रुटि होती है, वह यह कि ज्यों-ज्यों अनुभव बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों उन सिद्धान्तों में अशुद्धि और मिथ्यात्व प्रकट होने लगता है, और अन्त में उस सिद्धान्त को बदलना
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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